Wednesday, September 19, 2012

समय पर पौधों को पर्याप्त खुराक देकर पैदावार में की जा सकती है बढ़ोतरी


 
    ललीतखेड़ा गांव में बुधवार को पूनम मलिक के खेत में महिला किसान पाठशाला का आयोजन किया गया। महिलाओं ने पाठशाला में कीट सर्वेक्षण के बाद कीट बही खाता तैयार किया। कीट सर्वेक्षण के साथ-साथ महिलाओं ने कपास के पौधों, फूलों, टिंडों व बोकियों की गिनती कर पौधों का भी बही खाता तैयार किया। महिलाओं ने 6 ग्रुप बनाकर 10-10 पौधों का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के बाद महिलाओं ने जामुन के पेड़ के नीचे बैठकर चार्ट पर अपना बही खाता तैयार किया। मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो ने सर्वेक्षण के बाद तैयार किए गए आंकड़ों की तरफ इशारा करते हुए बताया कि कपास के इस खेत में इस सप्ताह शाकाहारी कीटों की संख्या नामात्र है। इस सप्ताह फसल में लाल व काला बानिया ही नजर आए हैं। पूनम मलिक ने महिलाओं को बताया कि उन्होंने कीट सर्वेक्षण के दौरान खेत में लाल व काला बानिए के अंडे भी देखे हैं। पूनम ने बताया कि लाल बानिया अपने अंड़े कपास के पौधे के पास गले-सड़े पत्तों के नीचे व जमीन के ऊपर देता है तथा काला बानिया कपास के खिले हुए टिंडों के अंदर देता है। सविता ने महिलाओं द्वारा किए गए कपास के पौधों के सर्वेक्षण के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस प्रयोगधीन खेत में एक पौधे पर औसतन 80 टिंडे, 2 फूल व 22 बोकियां मिली हैं। सविता ने बताया कि अगर इस समय पौधों को पर्याप्त खुराक मिल जाए तो बोकियों, फूलों व टिंडों को अच्छी तरह विकसित कर अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। मीना मलिक ने बताया कि पाठशाला में आने वाली महिलाओं को अभी तक अपने खेत में एक बूंद भी कीटनाशक के प्रयोग की जरुरत नहीं पड़ी है। महिलाओं ने बताया कि उनके लिए बड़ी खुशी की बात है कि उन्होंने अपनी मेहनत के बलबूते खुद का ज्ञान पैदा कर कीटनाशकों को धूल चटा दी है। 

टीवी के माध्यम से सिखाएंगी जहर से मुक्ति के गुर

 पाठशाला में मास्टर ट्रेनर के साथ विचार-विमर्श करती महिलाएं।

: कपास की फसल में कीट सर्वेक्षण करती महिलाएं। 
महिला किसान पाठशाला के अलावा महिलाएं टीवी के माध्यम से भी किसानों के साथ अपने अनुभव बांटेंगी। वीरवार को लोकसभा चैनल पर सायं 5.30 बजे ‘ज्ञान दर्पण’ कार्यक्रम में, शुक्रवार को सायं 5.30 बजे ‘सार्इंस दिस वीक’ कार्यक्रम में तथा सोमवार को डीडी नैशनल चैनल पर सायं 6.30 बजे ‘कृषि दर्शन’ कार्यक्रम में किसानों को कीट नियंत्रण के माध्यम से जहर से छुटकारा पाने के गुर सिखाएंगी। 
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Wednesday, September 12, 2012

किसान को फायदा या नुकशान पहुंचाने नहीं अपना जीवनचक्र चलाने के लिए फसल में आते हैं कीट

        जिले के ललीतखेड़ा गांव में बुधवार को महिला किसान पूनम मलिक के खेत में महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला में ललीतखेड़ा, निडाना व निडानी गांव की महिलाओं ने भाग लिया। पाठशाला की शुरुआत महिलाओं ने कपास कीट सर्वेक्षण के साथ की। महिलाओं ने कपास की फसल में लगभग एक घंटे तक कीट अवलोकन व निरीक्षण किया। कीट सर्वेक्षण के बाद महिलाओं ने कीट बही खाता तैयार किया। इसके साथ-साथ महिलाओं ने कपास की फसल में मौजूद पर्णभक्षी कीटों व मासाहारी कीटों के क्रियाकलापों के बारे में भी अपने-अपने अनुभव पाठशाला में रखे।  
 कपास के खेत कीटों का अवलोकन करती महिलाएं।

 कपास की फसल में मौजूद कीटों का बही खाता दर्ज करती महिलाएं। 
मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो ने बही खाते में दर्ज आंकड़ों की तरफ इशारा करते हुए महिलाओं को बताया कि आंकड़ों के अनुसार अभी तक इस कपास की फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक की जरुरत नहीं है। सुदेश ने महिलाओं को बताया कि कोई भी कीट हमारा मित्र या दुश्मन नहीं होता। इसलिए हमें कीटों को मित्र या दुश्मन कीटों के नजरिए से नहीं देखना चाहिए। शाकाहारी कीट पौधों पर अपना जीवन यापन करने के लिए आते हैं और पौधों के पत्ते, फूल इत्यादि खाकर अपनी वंशवृद्धि करते हैं। मासाहारी कीटों को अपना जीवन यापन करने के लिए मास की जरुरत होती है। इसलिए वे अपना पेट भरने के लिए मास की तलाश में शाकाहारी कीटों के साथ-साथ पौधों पर आ जाता हैं। कोई भी कीट किसानों को नुकसान व लाभ पहुंचाने के लिए पौधों पर नहीं आता है। कमलेश ने बताया कि फिलहाल कपास के पौधों को पर्णभक्षी कीटों की सबसे ज्यादा जरुरत है। क्योंकि पर्णभक्षी कीट पौधों के ऊपरी हिस्सा के पत्तों में छेद कर नीचे के पत्तों के लिए प्रकाश संशलेषण का रास्ता तैयार करते हैं। इससे नीचे के पत्ते पौधे के लिए पर्याप्त भेजन बनाने में सक्षम हो जाते हैं। जिससे पौधे पर भरपूर मात्रा में फल आता है। लेकिन अधिकतर किसान पत्तों को कटा देखकर घबरा जाता हैं और कीटनाशकों के माध्यम से कीटों को कंट्रोल करने का प्रयास करते हैं। किसानों की इस जद्दोजहद में शाकाहारी कीटों के साथ-साथ मासाहारी कीट भी मारे जाते हैं। जिससे आगे चलकर फसल पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए हमें कीटों को कंट्रोल नहीं पहचानने की जरुरत है।
फोटो कैप्शन

Wednesday, September 5, 2012

अज्ञान के कारण चक्रव्यूह में फंस रहे किसान : शर्मा

खाद्य एवं कृषि विशेषज्ञ ने किसान-कीट विवाद पर किसानों के साथ की चर्चा

   आज हमारे देश के किसनों  की हालत भी पांडू पुत्र अभिमन्यू की तरह है, जिसे चक्रव्यूह में प्रवेश करना तो आता था, लेकिन उसे उस चक्रव्यूह से बाहर निकलना नहीं आता था। वैसा ही हाल हमारे किसानों का है, जिन्हें कृषि क्षेत्र में नई-नई तरीकब अपना कर एक ऐसे चक्रव्यूह में फंसाया जा रहा है, जिसमें किसान दाखिल तो आसानी से हो जाते हैं, लेकिन उस चक्रव्यूह से बाहर निकलना उनके बस की बात नहीं है। यह बात विश्व विख्यात खाद्य एवं कृषि विशेषज्ञ डा देवेंद्र शर्मा ने मंगलवार को निडाना गांव में आयोजित किसान खेत पाठशाला में किसान-कीट विवाद पर किसानों के साथ चर्चा करते हुए कही। इस अवसर पर पाठशाला में खाप पंचायत की तरफ  से ढुल खाप प्रधान इंद्र सिह ढुल, खटकड खेड़ा खाप के प्रधान दलेल खटकड़, जाटू खाप प्रधान संदीप ढांड़ा, 84 खाप प्रधान भिवानी से राज सिंह घणघस, किसान क्लब के प्रधान फूल सिंह श्योकंद, बागवानी विभाग से डीएचओ डा. बलजीत सिंह  भयाणा, मिट्टी एवं संरक्षण विभाग जींद से डा. मीना सिहाग भी विशेष रूप  से मौजूद थी। पंचायत का संचालन खाप पंचायत के संचालक कुलदीप सिंह ढांडा ने किया।
डा देवेंद्र शर्मा ने कहा कि ज्यों-ज्यों कीटनाशकों का प्रयोग अधिक होता है, त्यों-त्यों कुदरत कीटों को भी उन कीटनाशकों से बचाव के लिए अधिक ताकत प्रदान कर देती है, जिससे दो-चार वर्ष बाद कीटनाशक बेअसर हो जाते हैं और कंपनियों फिर से उन कीटों को मारने के लिए नए कीटनाशक तैयार करती है। इस प्रकार नए-नए कीटनाशक व बीज तैयार कर कुछ मुनाफाखोर किसानों की जेबों पर डाका डाल रहे हैं।  इस प्रकार पूरी प्लांनिग के तहत किसानों को इस चक्रव्यूह में धकेला जाता है। डा. शर्मा ने आंध्रप्रदेश का उदहारण देते हुए बताया कि कई वर्ष पहले आंध्रप्रदेश के किसानों ने भी निडाना के किसानों की तरह कीटनाशक रहित खेती की मुहिम चलाई थी। जिसके परिणामस्वरूप आज आंध्रप्रदेश के 21 जिलों में 35 लाख  एकड में कीटनाशक रहित खेती होती और इस दौरान उनकी पैदावार घटने की बजाए बढ़ी है। अब तो वहां की सरकार भी किसानों के पक्ष में उतर आई है। सरकार ने किसानों की इस मुहिम को अपने हाथ में लेते हुए 2013 में 100 एकड जमीन में कीटनाशक रहित खेती करने का टारगेट रखा है। शर्मा ने बताया कि आंध्रप्रदेश के किसानों द्वारा शुरू की गई इस मुहिम में वहां के कुछ एनजीओ भी आगे आए हैं। वहां के  एक स्वयं सेवी महिला समूह ने किसानों कि  इस मुहिम के लिए पांच हजार करोड रूपए कीराशि एक त्रित की है। उन्होंने बताया कि हमारी ·माई का 40-50 प्रतिशत पैसा तो हमारी बीमारी पर ही खर्च हो जाता है। डा. शर्मा ने कहा कि 1990-91 में जब अमेरिका बीटी को भारत में लाना चाहते थे तो उस समय अमेरिका ने बीटी के बीज की कीमत सिर्फ चार करोड़ रुपए मांगी थी, लेकिन 2004 से अब तक अमेरिका बीटी के बीज के माध्यम से देश के किसानों से 6 हजार करोड़ रुपए कमा चुका हैं। डा. शर्मा ने कहा कि थाली को जहर मुक्त करने की इस लडाई में आने वाले युग में निडाना के किसानों को याद किया जाएगा। कुलदीप ढांडा ने पाठशाला में आए किसानों व खाप प्रतिनिधियो पर सवाल दागते हुए कहा कि क्या आप पूरे दृढ़ निश्चय के साथ यह कह सकते हैं कि आपके परिवार या रिश्तेदारी में कोई कैंसर का मरीज नहीं है? ढांडा ने कहा कि कीटनाशकों के अंधाधूंध प्रयोग के कारण आज कैंसर जैसी घातक बीमारी भी काफी तेजी से फैल रही है। ढांडा ने बताया कि गांव चिडोठ जिला भिवानी में हर पांचवें घर में तथा भटिंडा (पंजाब) की गली नंबर दो के 10 घरों में से 9 घरों में कोई ना कोई व्यक्ति कैंसर का मरीज है। किसान रमेश ने बताया कि किसान कीटनाशक के माध्यम से कीटों पर जैसे ही अटैक करता है तो कीट अपना जीवनकाल छोटा करना शुरू कर देते हैं तथा बच्चे पैदा करने की क्षमता को बढ़ा लेते हैं। इससे खेत में कीटों की संख्या कम होने की बजाए ओर अधिक बढ़ जाती है। किसान अजीत ने बताया कि अंगीरा, जंगीरा, फंगीरा अकेले ही 98 प्रतिशत मिलीबग को कंट्रोल कर लेते हैं। किसान मनबीर ने बताया कि हमें पौधो की भाषा सीखने की जरुरत है। जब पौधों पर किसी शाकाहारी कीट का आक्रमण होता है तो पौधे मासाहारी कीटों को बुलाने के लिए एक अलग तरह की सुगंध छोडते हैं और मासाहारी कीट उस सुगंध के कारण फसल में शाकाहारी कीटों को खाने के लिए पहुंच जाते हैं। इस अवसर पर खाप प्रतिनिधियों ने पांच पौधों के पत्ते काट कर प्रयोग को आगे बढ़ाया। पाठशाला के समापन पर सभी खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया।

कृषि विशेषज्ञ से की मार्गदर्शन की अपील

खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने खाद्य एवं कृषि विशेषज्ञ डा. देवेंद्र शर्मा से इस विवाद का निपटारा करने के लिए नवंबर में होने वाली खाप पंचायत में पहुंचकर उनका मार्गदर्शन करने की अपील की। डा. शर्मा ने खाप पंचायत की अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि खाप पंचायतों से फैसला सुनाते वक्त कोई चूक न हो, इसके लिए वे नवंबर में होने वाली सर्व खाप महापंचायत में अपने साथ-साथ हरियाणा एवं पंजाब हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश को भी साथ लेकर आएंगे। ताकि किसानों की इस मुहिम पर कानूनी मोहर भी लग सके।
किसानों को सम्बोधित करते डा. देवेंद्र शर्मा।
 डा. देवेंद्र शर्मा को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान।