Wednesday, August 29, 2012

दूरदर्शन की टीम ने शूटिंग को दिया अंतिम रूप


   बेजुबान कीटों को बचाने के लिए जिले के निडाना गांव की धरती से उठी आवाज अब विदेशों में भी गुंजेगी। किसानों की आवाज को दूसरे देशों तक पहुंचाने में दिल्ली दूरदर्शन की टीम इनका माध्यम बनी है। दिल्ली दूरदर्शन की टीम अपने कृषि दर्शन कार्यक्रम की रिकार्डिंग के लिए मंगलवार को निडाना गांव के किसानों के बीच पहुंची थी। टीम ने मंगलवार को निडाना गांव में किसान खेत पाठशाला तथा बुधवार को ललीतखेड़ा की महिला किसान खेत पाठशाला की गतिविधियों को कैमरे में शूट किया। बुधवार को हुई बूंदाबांदी के बीच भी कार्यक्रम की शूटिंग चली और ललीतखेड़ा की महिला किसान खेत पाठशाला में शूटिंग को अंतिम रुप देकर टीम अपने गंतव्य की तरफ रवाना हो गई। दिल्ली दूरदर्शन द्वारा 4 सितंबर को सुबह 6.30 बजे कार्यक्रम का प्रसारण किया जाएगा और यह कार्यक्रम 165 देशों में प्रसारित होगा।
निडाना गांव के किसानों द्वारा जलाई गई कीट ज्ञान की मशाल अब देश ही नहीं बल्कि विदेश के किसानों की राह का अंधेरा दूर कर उन्हें एक नया रास्ता दिखाएगी। इस रोशनी को विदेशों तक पहुंचाने के लिए दिल्ली दूरदर्शन की टीम पिछले दो दिनों से अपने पूरे तामझाम के साथ निडाना में डेरा डाले हुए थी। दूरदर्शन की इस टीम में रिपोर्टर विकास डबास, कैमरामैन सर्वेश व राकेश के अलावा 84 वर्षीय वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस सांगवान भी मौजूद थे। कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस सांगवान ने मंगलवार को निडाना गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला में पहुंचकर कीट कमांडो किसानों के साथ सीधे सवाल-जवाब किए और दूरदर्शन की टीम ने उनके अनुभव को अपने कैमरे में कैद किया। अलेवा से आए किसान जोगेंद्र ने कृषि वैज्ञानिक को अपने अनुभव के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि वह 1988 से खेतीबाड़ी के कार्य से जुड़ा हुआ है। खेतीबाड़ी के कार्य से जुड़ने के साथ ही उसने अपने खेतीबाड़ी के सारे खर्च का रिकार्ड भी रखना शुरू किया हुआ है। 1988 से लेकर 2011 तक वह अपने खेतों में 70 लाख के पेस्टीसाइड डाल चुका है। लेकिन इस बार उसने निडाना के किसानों के साथ जुड़ने के बाद अपने खेत में एक छंटाक भी कीटनाशक नहीं डाला है और अब वह खुद भी कीटों की पहचान करना सीख रहा है। निडानी के किसान जयभगवान ने बताया कि वह 14 वर्ष की उम्र से ही खेती के कार्य में लगा हुआ है। जयभगवान ने बताया कि उनके एक रिश्तेदार की पेस्टीसाइड की दुकान है और वह हर वर्ष उससे कंट्रोल रेट पर दवाइयां खरीदता था। कंट्रोल रेट पर दवाइयां मिलने के बाद भी उसका हर वर्ष दवाइयों पर 80 हजार रुपए खर्च हो जाता था। लेकिन पिछले दो वर्षों से उसने इस मुहिम से जुड़ने के बाद कीटनाशकों का प्रयोग बिल्कुल बंद कर दिया है। खरकरामजी के किसान रोशन ने बताया कि वह 10-12 एकड़ में खेती करता है, लेकिन वह अपने खेत में सुबह पांच बजे से आठ बजे तक सिर्फ तीन घंटे ही काम करता है। इसके बाद अपनी ड्यूटी पर चला जाता है। रोशन ने बताया कि अधिक पेस्टीसाइड के प्रयोग से पैदावार में बढ़ोतरी नहीं होती। पैदावार बढ़ाने में दो चीजें सबसे जरुरी हैं। पहला तो सिंचाई के लिए अच्छा पानी और दूसरा खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या। अगर खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या होगी तो अच्छी पैदावार निश्चित है। सिवाहा से आए किसान अजीत ने बताया कि वह अपनी जमीन ठेके पर देता था। जिस किसान को वह ठेके पर जमीन देता था, वह फसल में अंधाधूंध कीटनाशकों का प्रयोग करता था। जहरयुक्त भेजन के कारण कैंसर की बीमारी ने उसे अपने पंजों में जकड़ लिया और पिछले वर्ष उसकी मौत हो गई। इसलिए इस वर्ष उसने अपने खेत ठेके पर नहीं देकर स्वयं खेती शुरू की है और उसने भी कीट ज्ञान अर्जित कर अपने खेत में एक बूंद भी कीटनाशक नहीं डाला है। उसके खेत में इस वर्ष शाकाहारी व मासाहारी कीट भरपूर संख्या में मौजूद हैं। लेकिन इन कीटों से उसकी फसल को रत्ती भर भी नुकसान नहीं हुआ है। इसके बाद बुधवार को टीम ललीतखेड़ा गांव में महिला किसान पाठशाला में पहुंची और यहां महिलाओं से भी उनके अनुभव के बारे में जानकारी जुटाई। महिलाओं ने कीटों पर लिखे गीत सुनाकर टीम का स्वागत किया। टीम ने महिलाओं द्वारा लिखे गए तीन गीतों की भी रिकार्डिंग की। इस दौरान टीम ने निडाना के किसान रणबीर द्वारा चार एकड़ में बोई गई देसी कपास के शॉट भी लिए।
किसानों से सवाल करते कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस सांगवान।

किसानो से बातचीत करते कृषि 

कृषि दर्शन कार्यक्रम के लिए किसानों के अनुभव को शूट करते टीम के सदस्य।
कृषि वैज्ञानिक को उपहार भेंट करती महिला 

कृषि वैज्ञानिक ने थपथपाई किसानों की पीठ

टीम के साथ आए कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस सांगवान ने किसानों द्वारा शुरू किए गए इस कार्य की खूब सराहना की। किसानों की पीठ थपथपाते हुए सांगवान ने कहा कि उनकी यह मुहिम एक दिन जरुर शिखर पर पहुंचेगी और दूसरे किसानों को राह दिखाएगी। उन्होंने कहा कि इंसान को प्रकृति के साथ छेडछाड़ नहीं करनी चाहिए। आज मौसम में जो परिवर्तन आ रहे हैं, वह सब प्रकृति के साथ हो रही छेड़छाड़ का ही नतीजा है।

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Wednesday, August 22, 2012

कीटनाशकों से लड़ने के लिए कीटों को बनाया अचूक हथियार

                  लोगों की थाली से जहर कम करने के लिए चलाए गए कीटनाशक रहित खेती के इस अभियान को शिखर पर पहुंचाने के लिए निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाएं जी-जान से जुटी हुई हैं। इस अभियान की जड़ें गहरी करने तथा अधिक से अधिक गांवों तक इस मुहिम को पहुंचाने के लिए इन महिला किसानों द्वारा अन्य महिलाओं को भी मास्टर ट्रेनर ते तौर पर ट्रेंड किया जा रहा है। इन महिलाओं द्वारा ललीतखेड़ा गांव के खेतों में चल रही महिला किसान पाठशाला में आने वाली अन्य महिलाओं को कीटों की पहचान करवाकर इनके क्रियाकलापों की भी जानकारी दी जाती है। बुधवार को भारी बारिश के दौरान भी ये महिलाएं खेत पाठशाला में पहुंची और हाथों में छाता लेकर खेत में कीट सर्वेक्षण भी किया। महिलाओं ने पांच-पांच के 6 ग्रुप बनाए और प्रत्येक ग्रुप ने पांच-पांच पौधों से 9-9 पत्तों पर मौजूद कीटों की गिनती की। कीट सर्वेक्षण के बाद महिलाओं ने चार्ट पर अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश की। महिलाओं द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार पूनम मलिक के कपास के इस खेत में प्रत्येक पत्ते पर सफेद मक्खी की संख्या 0.4 प्रतिशत, तेले के शिशुओं की संख्या 0.6 प्रतिशत तथा चूरड़े की संख्या 1.3 प्रतिशत थी। वैज्ञानिक मापदंड के अनुसार खेत में मौजूद इन कीटों की संख्या आर्थिक हानि पहुंचाने से काफी नीचे थी। इसलिए महिलाओं को इस खेत में कीटनाशक के प्रयोग की कोई गुंजाइश नजर नहीं आई। पाठशाला के दौरान महिलाओं ने दो नई किस्म के हथजोड़े देखे। महिलाओं ने बताया कि अब तक वे 9 किस्म के हथजोड़े देख चुकी हैं। कीट सर्वेक्षण के दौरान शीला मलिक ने सभी महिलाओं का ध्यान अपने ऊपर मंडरा रही लोपा मक्खियों के झुंड की तरफ खींचा। लोपा मक्खियों के झुंड को देखकर अंग्रेजो ने कहा कि जब ये मक्खी काफी नीचे को उड़ती हैं तो भारी बारिश आने की संभावना रहती है। इसी दौरान राजवंती ने बताया कि हरियाणा के लोग इसे हैलीकॉप्टर (जहाज) के नाम से जानते हैं। लेकिन अंग्रेज इसे ड्रेगनफ्लाई कहते हैं। राजवंती की बात को बीच में काटते हुए संतोष ने कहा कि यह मक्खी पीछवाड़े से सांस लेती है। सरिता ने महिलाओं को चुप करते हुए कहा कि इसकी पहचान के साथ-साथ इसके काम पर ध्यान देने की जरुरत है। सरिता ने महिलाओं को समझाते हुए कहा कि यह मक्खी हमारे सिर पर इसलिए उड़ रही है कि जब हम खेत में से चलते हैं तो पौधों पर बैठे कीट व पतंगे उड़ते हैं और यह उड़ते हुए कीटों का शिकार कर अपना पेट भरती है। सरिता ने कहा कि यह मक्खी धान के खेत में खड़े पानी में अपने अंडे देती है। अगर किसान धान में कीटनाशक का प्रयोग न करें तो धान में आने वाली तन्ना छेदक व पत्ता लपेट को यह बड़ी आसानी से कंट्रोल कर लेती है। सरिता ने बताया कि हरियाणा का कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जिसने इसे देखा न हो, लेकिन उन्हें इसकी पहचान नहीं है। सरिता ने कहा कि उसने स्वयं लोपा मक्खी की चार प्रजातियों को देख चुकी है। इसी दौरान कपास के फूल पर पुष्पाहारी कीट तेलन को देखकर प्रेम ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। प्रेम ने कहा कि निडाना व ललीतखेड़ा में इस मक्खी का प्रकोप ज्यादा है, क्योंकि यहां के किसान कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करते हैं। रणबीर मलिक ने प्रेम के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि तेलन तो उनकी फसल की हीरोइन है, क्योंकि यह कपास में परपरागन में अहम भूमिका निभाती है। मलिक ने बताया कि निडाना के किसानों ने अब तक तेलन द्वारा प्रकोपित 508 फूलों की फूलों की पहचान की है। इनमें से सिर्फ तीन फूल ही ऐसे थे, जिनके मादा भाग खाए गए थे। बाकि 505 फूलों के सिर्फ नर पुंकेशर व पंखुड़ियां खाई हुई थी तथा मादा भाग सुरक्षित था। मलिक ने बताया कि यह अपने अंडे जमीन में देती है और इसके बच्चे मासाहारी होते हैं, जो टिड्डो व अंडों को अपना शिकार बनाते हैं। रमेश मलिक ने महिलाओं को मटकू बुगड़े व लाल बणिये के अंडे दिखाए।
बारिश के दौरान छाता लेकर कीटों का निरीक्षण करती महिलाएं।

कपास के पत्ते पर मौजूद लोपा मक्खी (ड्रेगनफ्लाइ)।

तेलन कीट द्वारा कपास के फूल के नर पुंकेशर खाने के बाद सुरक्षित मादा पुंकेशर।

Wednesday, August 15, 2012

स्वतंत्रता दिवस पर महिलाओं ने लिया देश को जहर से आजाद करवाने का संकल्प

कपास के पौधे पर कीटों की गिनती करती महिलाएं।

 कपास के फूल को खाती तेलन
        एक तरफ 15 अगस्त को जहां सारे देश में 66 वें स्वतंत्रता दिवस की खुशियां मनाई जा रही थी। जगह-जगह कार्यक्रमों का आयोजन कर देशभक्ति से ओत-प्रोत भाषणों से युवा पीढ़ी में देशभक्ति का बीज बो कर उन्हें देश सेवा की शपथ दिलवाई जा रही थी, वहीं दूसरी तरफ जिले के ललीतखेड़ा गांव के खेतों में महिला किसान पाठशाला की महिलाएं देश को जहर से मुक्त करवाने का संकल्प ले रही थी। अपने इस संकल्प को पूरा करने के लिए महिलाएं हाथ में कागज-पैन उठाकर भादो की इस गर्मी में कीट सर्वेक्षण के लिए कपास के पौधों से लटापीन होती नजर आई। इस दौरान महिलाओं को प्रेरित करते हुए सर्व खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को हमें राजनीतिक आजादी तो मिली और इससे हमें विकास के लाभ भी हासिल हुए, लेकिन कीटनाशकों से मुक्ति की लड़ाई अभी जारी है। निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाओं ने हिंदूस्तान की जनता को जो रास्ता दिखाया है, इससे एक दिन यह लड़ाई जरुर सफल होगी और जनता को विषमुक्त भेजन भी मिलेगा। जिससे हमारा पर्यावरण भी सुरक्षित बनेगा। इस अवसर पर महिलाओं ने 6 समूह बनाकर कपास के खेत का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षेण के दौरान महिलाओं ने पांच-पांच पौधों के पत्तों पर कीटों की गिनती की। महिलाओं ने पौधे के ऊपरी, बीच व निचले हिस्से से तीन-तीन पत्तों का सर्वेक्षण कर फसल में मौजूद सफेद मक्खी, चूरड़ा व तेले की तादात अपने रिकार्ड में दर्ज की। इसके बाद महिलाओं ने फसल में मौजूद कीटों का बही-खाता तैयार किया। बही-खाते में महिलाओं ने अपने-अपने खेत से लाए गए आंकड़े भी दर्ज करवाए। महिलाओं ने अपने खेत से दस-दस पौधों से आंकड़ा तैयार किया था, लेकिन सुषमा पूरे 28 पौधों से आंकड़ा तैयार कर लाई थी। खुशी की बात यह थी कि इन महिलाओं ने अभी तक अपने खेत में एक छटाक भी  कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। पाठशाला के दौरान महिलाओं ने कपास के फूलों पर तेलन का हमला देखा। महिलाओं ने पाया कि तेलन द्वारा सिर्फ फूल की पुंखडि़यां व नर पुंकेशर खाए हुए थे, जबकि स्त्री पुंकेशर सुरक्षित था। तेलन द्वारा खाए गए फूलों से फसल के उत्पादन पर कोई प्रभाव पड़ता है या नहीं इसे परखने के लिए महिलाओं ने इन फूलों को धागे बांधकर इनकी पहचान की। ताकि इससे यह पता चल सके की इन फूलों से फल बनता है या नहीं। ललीतखेड़ा में चल रही इस महिला पाठशाला में ललीतखेड़ा गांव से नरेश, शीला, संतोष, कविता, राजबाला, निडानी से संतोष व कृष्णा पूनिया, निडाना से कृष्णा, बीरमती, सुमित्रा, कमलेश, केलो तथा निडाना की मास्टर ट्रेनर मीनी, अंग्रेजो, बिमला, कमलेश व राजवंती मौजूद थी।

Wednesday, August 8, 2012

बुंदाबांदी के मौसम में भी महिलाओं ने किया कीट अवलोकन व निरीक्षण

 ललीतखेड़ा गांव की किसान पूनम मलिक के खेत में चल रही महिला किसान पाठशाला में बुधवार को महिलाओं ने बुंदाबांदी के मौसम में भी कीट अवलोकन एवं निरीक्षण किया। कीट निरीक्षण के दौरान पाया गया कि अभी तक कपास की फसल में मौजूद रस चूसक कीट सफेद मक्खी, हरा तेला व चूरड़ा फसल में आर्थिक कागार को पार नहीं कर पाए हैं। प्रेम मलिक ने पाठशाला में मौजूद महिला किसानों के समक्ष कपास के खेत में मौजूद तेलन के प्रति अपनी आशंका जताते हुए पूछा की तेलन कपास की फसल में क्या करती है। क्योंकि प्रेम मलिक पिछले सप्ताह अपनी कपास की फसल में तेलन नामक कीट के क्रियाकलापों को देखकर चिंतित थी। प्रेम मलिक ने महिलाओं को तेलन के क्रियाकलापों का जिकर करते हुए बताया कि तेलन कपास के पौधों पर बैठकर कपास के फूलों को खा रही थी। जिससे कारण उसे फसल के उत्पादन की चिंता सता रही है। महिलाओं ने प्रेम मलिक की समस्या का समाधान करने के लिए फसल में मौजूद तेलन के क्रियाकलापों को बड़े ध्यान से देखा। महिलाओं ने पाया कि तेलन द्वारा अधिकतर कपास के फूलों की पुंखडि़यों व फूल के नर पुंकेशर ही खाए हुए थे, जबकि स्त्री पुंकेशर सुरक्षित था। महिलाओं ने महिला किसान की समस्या का समधान धान करते हुए कहा कि जब तक फूल में स्त्री पुंकेशर सुरक्षित है तब तक फसल के उत्पादन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। बल्कि तेलन इस प्रक्रिया में परागन करवाने की भूमिका भी निभाएगी। मीना मलिक ने बताया कि तेलन अपने अंडे जमीन में देती है और इसके अंडों में से निकलने वाले बच्चे दूसरे कीटों के अंडों व बच्चों को खाकर अपना गुजारा करते हैं। इनमें खासकर टिडे के बच्चे शामिल हैं। इसलिए जिस वर्ष कपास में तेलन की संख्या ज्यादा होगी उस वर्ष टिडे कम मिलेंगे। रणबीर मलिक ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह तेलन पिछले वर्ष उसकी देसी कपास में भी आई थी। जिसे देखकर उसके माथे पर भी चिंता की लकीरे पैदा हो गई थी, लेकिन यह जल्द ही कपास के फूलों को छोड़कर जंतर (ढैंचा) के फूलों पर चली गई थी। लेकिन इसमें ताज्जुब की बात यह है थी कि तेलन द्वारा जंतर पर चले जाने के बाद भी जंतर की एक भी फली खराब नहीं हुई। सुषमा मलिक ने बताया कि कपास की फसल का जीवन चक्र 170 से 180 दिन का होता है और अब फिलहाल कपास की फसल 100 दिन के लगभग हो चुकी है। लेकिन अब तक पाठशाला में आने वाली किसी भी महिला को अपनी फसल में एक छटांक भी कीटनाशक के प्रयोग की जरुरत नहीं पड़ी है। इसलिए तो कहते हैं कीट नियंत्रणाय कीट हि: अस्त्रामोघा। अर्थात कीट नियंत्रण में कीट ही अचूक अस्त्र हैं।
कपास के फूलों की पुंखडि़यों को खाती तेलन 
 कपास की फसल का निरीक्षण करती महिला किसान।
खेत में कीटों का अवलोकन करती महिलाएं 

Saturday, August 4, 2012

सत्यमेव जयते के पर्दे पर दिखेंगी कीटों की मास्टरनी

  निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाएं अब सत्यमेव जयते के पर्दे पर नजर आएंगी। कीटों की इन मास्टरिनयों से रू-ब-रू होने के लिए शनिवार को दिल्ली से सत्यमेव जयते की टीम ललीतखेड़ा गांव के खेतों में चल रही महिला किसान पाठशाला पहुंची। इस दौरान टीम ने लगभग आधे घंटे तक ललीतखेड़ा व निडानी की महिलाओं से कीटनाशक रहित खेती पर सवाल-जवाब किए व उनके अनुभव को अपने कैमरे में कैद किया। दरअसल सत्यमेव जयते की ये टीम अपने 'असर' कार्यक्रम की शूटिंग के लिए यहाँ आई थी और इसी  कार्यक्रम के लिए महिलाओं के शाट लिए।
निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाएं अब सत्यमेव जयते के पर्दे से दुनिया के सामने खेतों से पैदा किए गए अपने कीट ज्ञान को बांटेगी। इसकी कवरेज के लिए सत्यमेव जयते की एक टीम शनिवार को ललीतखेड़ा गांव में चल रही महिला किसान पाठशाला में पहुंची। टीम की रिपोर्टर रितू भारद्वाज ने लगातार आधे घंटे तक इन महिलाओं के बीच बैठकर कीटनाशक रहित खेती के इनके ज्ञान को परखा तथा कैमरामैन कपील सिंह ने इनके अनुभव को अपने कैमरे में कैद किया। टीम ने महिलाओं से बिना कीटनाशक के फसल से अधिक पैदावार लेने का फार्मूले पर काफी देर तक चर्चा की। महिलाओं ने भी बिना किसी झिझक के खुलकर टीम के सामने अपने विचार रखे। कीटों की मास्टर ट्रेनर सविता, मनीषा, मीना मलिक ने बताया कि उन्होंने 142 प्रकार के कीटों की पहचान कर ली है। जिसमें 43 किस्म के कीट शाकाहारी व 99 किस्म के कीट मासाहारी होते हैं। शाकाहारी कीट फसल में रस चूसकर व पत्ते खाकर अपनी वंशवृद्धि करते हैं, लेकिन मासाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर अपना गुजारा करते हैं। इस प्रकार मासहारी कीट शाकाहारी कीटों को चट कर देते हैं। कीटों के जीवनचक्र के दौरान किसान को कीटनाशक का प्रयोग करने की जरुरत नहीं पड़ती। आज किसान को अगर जरुरत है तो वह है कीटों का ज्ञान अर्जित करने की। कीट मित्र किसान रणबीर मलिक ने टीम द्वारा पुछे गए बिना कीटनाशक का प्रयोग किए अच्छी पैदावार लेने के सवाल का जवाब देते हुए मलिक ने बताया कि अच्छी पैदावार के लिए दो चीजों की जरुरत होती है। पहली तो सिंचाई के लिए अच्छे पानी व दूसरी खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या। खेत में अगर पौधों की पर्याप्त संख्या होगी तो अधिक पैदावार अपने आप ही मिल जाएगी। किसान रामदेवा ने टीम के सामने कीटनाशक का प्रयोग न करने वाले एक किसान का ताजा उदहाराण रखते हुए बताया कि उनके पड़ोसी किसान कृष्ण की गन्ने की फसल में काली कीड़ी का काफी ज्यादा प्रकोप हो गया था, लेकिन कृष्ण ने एक बार भी अपनी फसल में कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया। कुछ दिन बाद काली कीड़ी को मासाहारी कीटों ने चट कर उसका खात्मा कर दिया और आज कृष्ण की गन्ने की फसल सुरक्षित है। इस प्रकार किसान का कीटनाशक पर खर्च होने वाला पैसा भी बच गया और उसकी फसल जहर से भी बच गई। इस दौरान टीम ने महिलाओं द्वारा कीटों पर लिखे गए गीतों की रिकार्डिंग भी की। बाद में महिलाओं ने टीम को हथजोड़ा कीट का चित्र स्मृति चिह्न के रूप में भेंट किया।
महिलाओं की कायल हो गई टीम की रिपोर्टर: टीम की रिपोर्टर रितू भारद्वाज कार्यक्रम की रिकार्रिंड़ग के दौरान महिलाओं से सवाल-जवाब करते समय उनके अनुभव को देखकर उनकी कायल हो गई। रितू ने इन महिलाओं से प्रेरणा लेकर इस अभियान की जमीनी हकीकत से रू-ब-रू होने के लिए महिलाओं से दौबारा अपने पिता के साथ उनकी पाठशाला में आने का वायदा किया।

पाठशाला में महिलाओं को कैमरे में शूट करते टीम के सदस्य।
 टीम की रिपोर्टर को स्मृति चिह् भेंट करती महिलाएं।



Wednesday, August 1, 2012

कीटों की ‘कलाइयों’ पर भी सजा बहनों का प्यार

भाई व बहन के प्यार के प्रतीक रक्षाबंधन के त्योहार पर आप ने बहनों को भाइयों की कलाइओं पर राखी बांधते हुए तो खूब देखा होगा, लेकिन कभी देखा या सुना है कि किसी लड़की या किसी महिला ने कीट को राखी बांधकर अपना भाई माना हो और कीट ने उसे राखी के बदले कोई शुगुन दिया हो नहीं ना। लेकिन निडाना व ललीतखेड़ा गांव की महिलाओं ने रक्षाबंधन के अवसर पर कीटों की कलाइयों पर बहन का प्यार सजाकर यानि राखी बांधकर ऐसी ही एक नई रीति की शुरूआत की है। महिलाओं ने कीटों के चित्रों पर प्रतिकात्मक राखी बांध कर इन्हें अपने परिवार में शामिल कर इनको बचाने का संकल्प लिया है। कीट मित्र महिला किसानों ने बुधवार को ललीतखेड़ा गांव में पूनम मलिक के खेतों पर आयोजित महिला किसान पाठशाला में रक्षाबंधन के अवसर पर मासाहारी कीटों के चित्रों पर राखी बांध कर कीटों को भाई के रूप में अपना लिया। इसके साथ ही इन अनबोल मासाहारी कीटों ने भी इन महिला किसानों को शुगुन के रूप में उनकी थाली से जहर कम करने का आश्वासन दिया। रक्षाबंधन के आयोजन से पहले महिला किसान पाठशाला की रूटिन की कार्रवाई चली। महिला किसानों ने कपास की फसल का अवलोकन कर कीट बही-खाता तैयार किया।
निडाना व ललीतखेड़ा की महिला किसान पाठशाला की महिलाओं ने भाई-बहन के प्यार के प्रतिक रक्षाबंधन के पर्व पर कीटों को राखी बांधकर नई परंपरा की शुरूआत की है। इन महिला किसानों द्वारा शुरू की गई इस नई परंपरा से जहां कीटों को तो पहचान मिलेगी ही, साथ-साथ हमारे पर्यावरण पर भी इसके सकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे। कीट मित्र महिला किसानों ने बुधवार को महिला किसान पाठशाला में मासहारी कीट हथजोड़े को राखी बांधकर सभी मासाहारी कीटों को अपना भाई स्वीकार कर उन्हें अपने परिवार का अंग बना लिया। महिलाओं ने राखी बांधकर यह संकल्प लिया कि वे फसल में मौजूद कीटों की सुरक्षा के लिए अपनी फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग नहीं करेंगी। इसके साथ-साथ महिलाओं ने ‘हो कीड़े भाई म्हारे राखी के बंधन को निभाना’ गीत गाकर कीटों से राखी के शुगुन के तौर पर उनकी फसल की सुरक्षा करने की विनित की। महिलाओं ने रक्षाबंधन की पूरी परंपरा निभाई तथा कीटों के चित्रों को राखी बांधने के बाद उनकी आरती भी उतारी। इसके अलावा महिलाओं ने ‘ऐ बिटल म्हारी मदद करो हामनै तेरा एक सहारा है, जमीदार का खेत खालिया तनै आकै बचाना है’, ‘निडाना-खेड़ा की लुगाइयां नै बढ़ीया स्कीम बनाई है, हमनै खेतां में लुगाइयां की क्लाश लगाई है’, ‘अपने वजन तै फालतु मास खावै वा लोपा माखी आई है’ आदि भावुक गीत गाकर किसानों को झकझोर कर रख दिया। अंग्रेजो, गीता मलिक, बिमला मलिक, कमलेश, राजवंती, मीना मलिक ने बताया कि किसान जानकारी के अभाव में अपनी फसल के रक्षकों के ही भक्षक बन जाते हैं। उन्होंने बताया कि फसल में दो प्रकार के कीट होते हैं एक शाकाहारी व दूसरे मासाहारी। मासाहारी मास खाकर अपनी वंशवृद्धि करते हैं। शाकाहारी फसल के फूल, पत्ते खाकर व इनका रस चूसकर अपना जीवनचक्र चलाते हैं। खान-पान के अधार पर शाकाहारी कीट भी दो प्रकार के होते हैं। एक डंक वाले व दूसरे चबाकर खाने वाले। पाठशाला की शुरूआत के साथ ही महिलाओं ने अपने रूटिन के कार्य पूरे किए। महिलाओं ने फसल का अवलोकन कर कीट बही-खाता तैयार किया। बही-खाते में दर्ज रिपोर्ट के आधार पर फसल में अभी तक किसी भी प्रकार के कीटनाशक की जरुरत नहीं थी। इस अवसर पर पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल के साथ खाप पंचायतों के संयोजक कुलदीप ढांडा, कीट कमांडो किसान रणबीर मलिक, मनबीर रेढू, रमेश सहित अन्य किसान भी मौजूद थे।  

140 पर पहुंची कीटों की गिनती

 कीटों को राखी बांधने से पहले थाली सजाती महिलाएं।

 कीटों को राखी बांधने से पहले थाली सजाती महिलाएं।

हथजोड़ा नामक कीट के चित्र की आरती उतारती महिलाएं।

हथजोड़ा नामक कीट के चित्र पर तिलक करती महिलाएं

बहना की कलाई पर राखी बंधवाने पहुँचा - मटकू बुग्ड़ा