Wednesday, July 25, 2012

महिलाओं के साथ दोस्ती

कीट चाहे शाकाहारी हों या मासाहारी दोनों ही किस्म के कीटों ने कीट मित्र महिलाओं के साथ दोस्ती कर ली है। जैसे ही महिलाएं महिला किसान पाठशाला में पहुंचती हैं, वैसे ही कीट महिलाओं के पास आकर  बैठ जाते हैं। बुधवार को ललीतखेड़ा गांव की महिला किसान पूनम मलिक के खेत पर जैसे ही महिलाओं का आगम शुरू हुआ, वैसे ही कीटों ने भी पाठशाला में दस्तक दे दी। पाठशाला शुरू होने से पहले ही सुमित्रा के हाथ पर कातिल बुगड़ा तथा सुषमा के हाथ पर मटकु बुगड़ा आकर बैठ गया। पाठशाला का आरंभ खाप पंचायतों के संचालक कुलदीप ढांडा ने कैप्टन लक्ष्मी सहगल की मृत्यु पर दो मिनट का मौन धारण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर की। ढांडा ने बताया कि कैप्टन लक्ष्मी सहगल नेता जी सुभाष चंद्र बोस की रानी झांसी रेजिमेंट की कैप्टन थी और इन्होंने देश की आजादी के बाद गरीबों के इलाज का बीड़ा उठाया था। उन्होंने बताया कि सहगल ने मृत्यु के तीन दिन पहले तक कानपुर में मरीजों का इलाज किया था। अंग्रेजो ने कहा कि देश को जहर से बचाने के लिए छेड़ी गई इस लड़ाई को वे आखरी सांस तक जारी रखेंगी और यही कैप्टन लक्ष्मी सहगल को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इसके बाद महिलाओं ने कपास के खेत में कीटों का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण में पाया कि कोई भी कीट पूनम मलिक के कपास के इस खेत में अगले एक सप्ताह हानि पहुंचाने की स्थिति में नहीं है। सुमित्रा  ने बताया कि कातिल बुगड़ा अपने बराबर व अपने से छोटे आकार के कीटों का खून पीकर अपनी वंशवृद्धि करता है। कातिल बुगड़ा शिकार को पकड़े ही उसका कत्ल कर देता है। सुषमा ने बताया कि मटकु बुगड़ा कपास में पाए जाने वाले लाल बनिए का खून पीकर अपना गुजारा करता है। सुषमा ने बताया कि अभी कपास में एकाध ही लाल बनिया आया है, लेकिन लाल बनिए की दस्तक के साथ ही मटकु बुगड़े ने भी कपास में दस्तक दे दी है। गीता ने कपास की फसल में फलेरी बुगड़े के बच्चे व प्रौढ़ देखा। शीला ने सर्वेक्षण के दौरान डायन मक्खी तथा सविता ने गोब की चितकबरी सुंडी के प्रौढ़ को पकड़ा।

कीटों को राखी बांध कर मनाएंगे रक्षाबंधन का पर्व

महिला किसान पाठशाला की महिलाओं ने बताया कि वे रक्षाबंधन के पर्व पर कीटों को पौंची (राखी) बांधकर रक्षाबंधन का पर्व मनाएंगी। रक्षा बंधन पर भाई बहन से राखी बंधवाता है और बहन की रक्षा की सौगंध लेता है, लेकिन इस बार वे कीटों को राखी बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प लेंगी। ताकि उनके बच्चों व उनके भाइयों की थाली जहर मुक्त हो सके। 

अनावरण यात्रा के लिए दिल्ली जाएंगी महिलाएं

सर्वेक्षण के बाद कीट बही-खाते की रिपोर्ट तैयार करवाती महिला।
कृषि अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल ने बताया कि कृषि विभाग की तरफ से महिलाओं को 27 जुलाई को दिल्ली में लगने वाले कृषि मेले की अनावरण यात्रा पर ले जाया जाएगा। ताकि कृषि मेले में महिलाएं ज्ञान प्राप्त कर सकें और इन महिलाओं में कृषि के प्रति और रुचि पैदा हो।

Wednesday, July 18, 2012

पाठशाला का पाँचवां सत्र

नजारा है ललीतखेड़ा गांव की महिला किसान पाठशाला का। पाठशाला की शुरूआत के साथ ही किसान कविता ने महिलाओं को एक नई किस्म का कीट दिखाया, जिसका पेट भिरड़ जैसा था व् पंख ड्रैगन फ़्लाई जैसे। इस कीट को निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाओं ने खेतों में पहली बार देखा था। कीट को देखते ही नारो पूछ बैठती है आएं यू डांगरां की माच्छरदानी आला कीड़ा आड़ै खेतां में के कैरा सै। इसे-इसे कीड़े तो डांगरां की माच्छरदानी में घैने पाया करें सैं। कविता ने नारो की बात को बीच में ही काटते हुए महिलाओं को नए कीट के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह नए किस्म की लोपा मक्खी है जो खान-पान के आधार पर मासाहारी होती है। इस मक्खी की तीन जोड़ी पैर व दो जोड़ी पंख होते हैं। अकसर किसान इसे हैलीकॉपटर के नाम से पुकारते हैं। कविता ने बताया कि यह धान में लगने वाले तना छेदक, पत्ता लपेट के पतंगों का उडते हुए शिकार कर लेती है। कविता ने कहा कि जब पतंगे नहीं रहेंगे तो अंडे कहां से आएंगे और अंडे ही नहीं होंगे तो सुंडी नहीं आएंगी। सविता ने बताया कि लोपा मक्खी अपने अंडे धान के खेत में खड़े पानी में देती है। पानी में पैदा होने वाले इसके बच्चे भी मासाहारी होते हैं। शीला ने बताया कि इसे जिंदा रहने के लिए खाने में अपने वजन से ज्यादा मास चाहिए। शीला की बात सुनकर नारों की आंखें खुली की खुली रह गई। नारो ने पूछा आएं फेर यू खेतां का कीड़ा है तो माच्छरदानी में कै करया कैरै सै। कृष्णा ने नारो के सवाल का जवाब देते हुए बताया यू कीड़ा उड़ै माच्छरां नै खाया करै सै। इस बात पर बहस करने के बाद महिलाओं ने कीट बही खाता तैयार करने के लिए कपास के पौधों का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के दौरान महिलाओं ने पाया कि कपास की फसल में पाने वाले शाकाहारी कीट सफेद मक्खी, हरा तेला, चूरड़ा, मिलीबग कोई भी  फसल में हानि पहुंचाने की स्थिति में नहीं था। रही बात मासाहारी कीटों की, कपास की फसल में कोई भी पौधा ऐसा नहीं था, जिस पर फलेरी बुगड़े के बच्चे (निम्प) मौजूद न हों। शीला ने बताया कि फलेरी बुगड़े के बच्चे शाकाहारी कीटों का खून पीकर गुजारा करते हैं। कीट सर्वेक्षण के आधार पर तैयार किए गए बही खाते से महिलाओं को कपास की फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक के प्रयोग की जरुरत महसूस नहीं हुई। खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने कहा कि पृथ्वी पर साढ़े तीन करोड़ साल पहले पौधे विकसित हुए थे और पौधों पर गुजारा करने के लिए कीट


फसल में पाए गए लालड़ी कीट का फोटो
आए थे। जबकि किसानों ने तो खेती की शुरूआत के साथ ही पौधों पर कब्जा करना शुरू किया है। कीटों व किसानों की इस अनावश्यक जंग में निश्चित तौर पर कीटों का पलड़ा भारी है। क्योंकि कीटों में इंसान की अपेक्षा प्रजजन करने की क्षमता अधिक व खुराक की जरुरत कम होती है। पंखों की वजह से कीटों के बच निकलने की संभावना भी ज्यादा रहती है।

किसान हरे नहीं पीले हाथ करने की चिंता करें

किसान पाठशाला की मास्टर ट्रेनर शीला ने कहा कि धान की फसल में लोपा मक्खी आने के बाद किसानों को धान में फूट के नाम पर डाली जाने वाली कीड़े मारने वाली हरी दवाई से हरे हाथ करने की जरुरत नहीं है। इसकी चिंता तो किसान लोपा मक्खी पर छोड़ अपने विवाह योग्य पुत्र-पुत्रियों के हाथ पीले करने की चिंता करें।
अन्य फसलों के कीटों ने भी महिलाओं से बनाई दोस्ती
 किसान पाठशाला में खाप प्रतिनिधि के साथ विचार-विमर्श करती महिलाएं।
कीटों के प्रति महिला किसानों के सकारात्मक रवैये को देखकर दूसरी फसलों के कीटों ने भी महिलाओं से दोस्ती बना ली है। बुधवार को ललीतखेड़ा में आयोजित महिला किसान पाठशाला में कीट सर्वेक्षण के दौरान लालड़ी व अखटिया बग भी महिलाओं के बीच आ गए। कविता ने बताया कि लालड़ी कीट अकसर घीया, तोरी, कचरी की बेलों पर पाया जाता है। यह कीट बेल के पत्ते खाकर अपना गुजारा करता है। अखटिया बग औषधीय आख के पौधे पर पाया जाता है। यह कीट भी रस चूसकर अपना जीवन चक्र चलाता है।



Wednesday, July 4, 2012

‘पाठशाला’ में पढ़ रही कीड़ों की पढ़ाई


सुबह के आठ बजे थे नजारा था गोहाना रोड पर स्थित ललीतखेड़ा गांव के पास का। कुछ महिलाएं सिर पर पानी का मटका लिए पूरे उत्साह के साथ गीत गुणगुनाती खेतों की तरफ जा रही थी। गीत के बोल थे ‘किड़यां का कट रहया चाला ऐ मैंन तेरी सूं देखया ढंग निराला ऐ मैंन तेरी सूं’ और इन महिलाओं के हाथों में खेती के औजारों की जगह थे कॉपी, पैन व् मेग्निफाईंग ग्लास। यह नजारा वाकई में चौकाने वाला था। ये महिलाएं खेत में खेती के काम के लिए नहीं बल्कि कीटों की पढ़ाई पढ़ने के लिए जा रही थी। इन महिलाओं को कीट ज्ञान देने का जिम्मा उठाया है निडाना गांव की महिला कीट पाठशाला की मास्टर ट्रेनर महिलाओं ने। कीटों की पहचान में माहरत हासिल करने के बाद अब इन महिलाओं ने ललीतखेड़ा गांव की तरफ अपनी टीम का रुख किया है। इन दिनों कीट पाठशाला की ये मास्टरनियां ललीतखेड़ा गांव की महिलाओं को फसल में पाए जाने वाले मासाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान कर कीटनाशकों से मुक्ति के गुर सीखा रही हैं। ललीतखेड़ा की महिला किसान पूनम मलिक के खेत को पाठशाला के लिए चुना गया है। सप्ताह के हर बुधवार को इस खेत पर महिला किसान पाठशाला का आयोजन किया जाता है।

कीटों के साथ-साथ पढ़ाया जाता है अनुशासन का पाठ

महिला किसान पाठशाला की सबसे खास बात यह है कि इस पाठशाला में कीटों के पाठ के साथ-साथ महिलाओं को अनुशासन का पाठ भी पढ़ाया जाता है। ताकि सभी महिलाएं समय पर खेत में पहुंच सकें और उनकी दिनचर्या न डगमगाए। बुधवार को जब ललीतखेड़ा की यशवंती पाठशाला में लेट पहुंची तो मास्टर ट्रेनर अंग्रेजों ने लेट आने पर उसकी खूब खिंचाई करते हुए उससे लेट आने का कारण पूछा। अंग्रेजो के सवाल का जवाब देते हुए यशवंती ने बताया कि जब वह सुबह आठ बजे घर का कामकाज निपटाकर पाठशाला में आने के लिए चली तो घर पर कुछ मेहमान आ गए। मेहमानों की आवभगत में उसे पाठशाला में आने में देर हो गई। 

कीटों की भी होती खाप पंचायत

बराह कलां बारहा प्रधान कुलदीप ढांडा जब महिला किसान पाठशाला में पहुंचे तो पाठशाला की प्रशिक्षु शीला मलिक ने कहा कि ढांडा साहब खाप पंचायत सिर्फ मानस-मानसों की नहीं किड़यां की भी होवै सै। देखो पिछली बार तो दूसरे हथजोड़े ने आपका स्वागत किया था और इस बार कीटों की खाप के प्रतिनिधि दूसरा हथजोड़ा आपके स्वागत के लिए आया है।

पैदल ही तय करती हैं तीन किलोमीटर का सफर 

 निडाना गांव की मास्टर ट्रेनर महिलाओं में कीट ज्ञान की अलख जगाने का बहुत चाव है। इसलिए लिए तो वो निडाना से ललीतखेड़ा तक आने के लिए किसी व्हीकल का भी सहारा नहीं लेती हैं। झुलसा देने वाली इस गर्मी में वो निडाना से ललीतखेड़ा तक के तीन किलोमीटर के सफर को पैदल ही तय कर लेती हैं। इस सफर के बाद उन्हें घर का कामकाज भी निपटाना पड़ता है।

कीटों पर तैयार किए हैं गीत

 पाठशाला में बही-खाते में कीटों की संख्या दर्ज करवाती महिला।

कीटों की ये मास्टरनी केवल अध्यापन का कार्य ही नहीं करती। अध्यापन के साथ-साथ ये महिलाएं लेखक व गीतकार की भूमिका भी निभाती हैं। अन्य लोगों को प्रेरित करने के लिए इन महिलाओं ने कीटों के पूर जीवन चक्र की जानकारी जुटाकर उनपर गीतों की रचना भी की हैं। जिनमें प्रमुख गीत हैं:
 किड़यां का कट रहया चालाए ऐ मैने तेरी सूं देखया ढंग निराला ऐ मैने तेरी सूं।  
म्हारी पाठशाला में आईए हो हो नंनदी के बीरा तैने न्यू तैने न्यू मित्र कीट दिखाऊं हो हो नंनदी के बीरा।

मैं बीटल हूं , मैं कीटल हूँ।। तुम समझो मेरी महता को ।।