Tuesday, September 28, 2010

महिला खेत पाठशाला का सौलहवां सत्र



        आज महिला खेत पाठशाला का सौलहवां सत्र है. याद रहे हरियाणा प्रांत में महिला किसानों के लिए यह पहली खेत पाठशाला है. यह पाठशाला निडाना गांव में जून के महीने में आरम्भ की गई थी। इस खेत पाठशाला में भाग ले रही महिला किसानों द्वारा हासिल कीट ज्ञान के अब तो कृषि विभाग के अधिकारीगण भी कायल होने लग गए है। इस मंगलवार, कृषि विभाग के तीन दर्जन कृषि अधिकारियों की टीम ने निडाना में चल रही महिला खेत पाठशाला का दौरा कर महिला किसानों से कपास की फसल में कीट प्रबंधन पर अपने अनुभव साझा किये। सर्वप्रथम श्रीमती सुदेश मलिक व डॉ कमल सैनी ने निडाना की महिला खेत पाठशाला में पधारने के लिये इन अधिकारियों का स्वागत करते हुए इन्हे बताया कि निडाना के रणबीर मलिक, ईगराह के मनबीर रेढू, कृषि विभाग के डॉ. सुरेन्द्र दलाल व कमल सैनी आदि प्रशिक्षकों के नेतृत्व में महिलाओं ने कपास के फसल प्रबंधन पर चौबने से लेकर चुगने तक की तमाम जानकारी हासिल की हैं। परन्तु ज्यादा जोर शाकाहारी व मांसाहारी कीटों की पहचान, इनके जीवनचक्र, पौधों पर इनकी गिनती, आर्थिक-कगार व पारिस्थितिक विश्लेषण पर ही लगाया गया। इन औरत किसानों में से ज्यादातर ने अपनी अनपढता को दरकिनार करते हुए अपनी लगन व मेहनत के बलबुते मर्द किसानों के मुकाबले तेजी से कीटों की पहचान करते हुए इनके बारे में ज्यादा जानकारी जुटाई है। इन महिला किसानों ने कपास की फसल पर कीटनाशकों का प्रयोग किये बगैर सफलतापुर्वक खेती कर दिखाई।  निसन्देह अबकी बार भी कपास की फसल में अब तक हरा-तेला(COTTON JASSID: NYMPHS) & (COTTON JASSID: ADULT), सफेद-मक्खी(WHITE FLY: NYMPH) & (WHITE FLY: ADULT), चुरड़ा(THRIPS), चेपा(APHID), माइट(SPIDER MITES), मिलीबग(MEALYBUG), मसखरा-बग(SQUASH BUG), मिरिड-बग(MIRID BUG), हरा स्टिंक-बग(GREEN STINK BUG), लाल-मत्कुण(RED COTTON BUG), श्यामल-मत्कुण(COTTON DUSKY BUG), स्लेटी-भुंड(GREY WEEVIL), तेलन(BLISTER BEETLE), भूरी पुष्पक-बीटल(BROWN FLOWER BEETLE), तम्बाकु वाली सूंडि(TOBACCO CATERPILLAR), पत्ता लपेट सुंडी(LEAF ROLLER), कुण्डलक(LOOPER) एवं अर्धकुण्डलक(SEMILOOPER) आदि हानिकारक कीट अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके हैं। इनके अलावा कपास के फलिय भाग खाकर गुजारा करने वाली चित्तीदार सूंडी(ADULTEGG and LARVA), गुलाबी सूंडी(LARVA) व् अमेरिकन सूंडी(LARVA) भी एकाध दिखाई दी हैं. पर खुशी की बात यह है कि इनमें से कोई भी हानिकारक कीट कपास की फसल में हानि पहुँचाने के स्तर तक नहीं पहुँच पाया। इसीलिये इन महिलाओं को अपनी कपास की फसल में कीटनाशकों के प्रयोग की आवश्यकता नहीं पड़ी। इसके बाद इन महिलाओं ने श्रीमती सरोज, मिनी मलिक, सुदेश, गीता, बिमला, अंग्रेजो व बीरमती के नेतृत्व में फ्लेक्स बोर्डों की सहायता से कृषि अधिकारीयों को निडाना में कपास के पारिस्थितितंत्र को विस्तार से बताया:: (VIDEO: HALF DAY AMONG COTTON WOMEN-Part I)
इसके बाद महिला किसानों एवं कृषि अधिकारियों के मध्य सवाल-जवाब व खुली बहस का सत्र आरम्भ हुआ। भिड़ते ही डा.राज सिंह ढाका ने महिलाओं से सवाल दागा- आप फसल में कीटनाशकों के इस्तेमाल का फैसला कैसे लेंगी?
इस सवाल का जवाब देने के लिए श्रीमती सुदेश खड़ी हुई और कहने लगी- हम पहले कपास के खेत में दस पौधों पर कीटों की गिनती करेंगी. प्रत्येक पौधे पर तीन पत्तों पर हानिकारक कीटों को गिनेगी. यदि हरे-तेले की २, सफ़ेद-मक्खी की ६ तथा चुरड़े की १० प्रति पत्ता औसत आये तो हम कहेगी की ये कीड़े आर्थिक कगार पर पहुँच चुके हैं. अब हम मांसाहारी कीटों का हिसाब लगायेंगी. अगर इनकी गिनती ठीक-ठाक हो तो घबराने वाली कोई बात नहीं.
बीच में ही  डा. ढाका ने फिर नया सवाल दागा- क्या दुश्मन कीटों की बीज़मारी होनी चाहिए? हमें नही मालूम डा. ढाका ने क्या सोच कर महिलाओं को अपना यह सवाल यूँ समझाया- कि बीजमारी तो में पाकिस्तान की भी चाहूँ सूं!
यह सुनते ही मिनी मलिक तुरंत बोली कि सर, बीज़मारी तो क्यां-एं की भी आच्छी नही होती. अगर हानिकारक कीटों की बीजमारी हो गयी तो मांसाहारी कीट क्या खायेंगे?
अब डा.रघबीर राणा ने पूछा कि क्या निडाना की महिलाओं ने कोई देशी कीटनाशक भी बनाया और इस्तेमाल किया है?
इसका जबाब दिया राजवंती ने अक डॉ जी सौ लिटर पानी में आधी किलो जिंक, ढाई किलो यूरिया व ढाई किलो डी.ऐ.पी. का घोल बनाकर कपास की फसल पर छिडकाव करने से तेले, चुरड़े, मक्खी, माईट व चेपे जैसे छोटे-छोटे जन्नौर हमने मरते देखे सै. इस पर अपने सामने आधे से भी ज्यादा अनपढ़ महिला बैठी होने के बावजूद डा. राणा ने इस फोलियर स्प्रे के फायदे बताने शरू कर दिए. हाँ! डा. दलबीर ने जरुर महिलाओं की इस बात का बवाना के एक किसान का उद्धरण देकर समर्थन किया. अब डा. राजेश लाठर ने महिलाओं से जानना चाहा कि स्कूल ख़त्म होने के बाद इब आप अपने घरवालों कै कीटनाशकों का स्प्रे करने की खोद तो नही लाया करोगी?
या सुनकर अंग्रेजो खड़ी हुई और न्यूँ कहन लगी," मतलब नही डा.जी, पहल्यां दुश्मन कीड़े गिनागी, फेर मकड़ी पावेंगी, कराईसोपा पावैगा, हथजोड़ा पावैगा....."
अंग्रेजो अपनी बात पूरी करती, इससे पहले ही डा. ढाका बीच में कूद पड़ा अर् अंग्रेजो नै न्यूँ समझावन लागा अक आप डा. साहिब का सवाल नही समझी. डा.साहिब न्यूँ पूछना चाहवै सै अक कराईसोपा भी नही पावै, ड्रैगन फ्लाई भी नही पावै?
"पावैंगे घेल्यां", बिना क्षण गंवाएं, अंग्रेजो ने डा. ढाका की बात काटी. पूर्ण विवरण के लिए यह वीडियो देखिये: .(VIDEO: HALF DAY AMONG COTTON WOMEN-PartII)
जी भरकर दोनों टीम्मों ने एक दूसरे से सवाल-जवाब किये।    एक बार तो यहाँ हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के मध्य कबड्डी मैच वाला दृश्य ही उत्पन हो गया था। ठीक इस गरमागर्म बहस के बीच ही समेकित बाल विकास योजना विभाग की जिला कार्यक्रम अधिकारी, श्रीमति राजबाला कटारिया भी मौके पर पहुँच हई। निडाना गावं के सरपंच श्री सुरेश मलिक, हमेटि के मास्टर ट्रेनर डॉ. सुभाष व अंग्रेजों ने महिला खेत पाठशाला में पहुँचने पर श्रीमति राजबाला कटारिया का स्वागत किया। श्रीमति राजबाला कटारिया ने अपने संबोधन में महिलाओं की मौजूदा परिस्थियों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि विषम परिस्थियों के बावजूद निडाना की महिलाओं की यह पहलकदमी वाक्य ही सराहनीय एवं स्वागत योग्य है जिसकी प्रशंसा करने में किसी को भी कंजुसी नही करनी चाहिए। उन्होनें महिलाओं को चेताया कि कीटनाशकों के खिलाफ आरम्भ की गई इस जंग में इन्हें अपने अदृश्य शत्रु के ब्योंत एवं हैसियत का अंदाजा लगाकर ही तैयारी करने की आवश्यकता है।
इसके बाद तो कृषि अधिकारियों ने इस कीट भेद की बहस को लिंग भेद की बहस बना डाला। अधिकारियों द्वारा उठाये गये चुटिले एवं चुटकिले सवालों के जबाब श्रीमति राजबाला ने सहजभाव से चुटिले एवं चुटकिले अंदाज में ही दिये जाने पर श्रोताओं विशेषकर महिलाओं के चेहरों पर विजयी मुस्कान देखते ही बनती थी।
इस दौरान मौका पा कर एक पाली डा.सुभाष से कानों-कान अपनी कपास की फसल में आई बीमारी का निदान चाहने लगा. डा.सुभाष इस समस्या का इलाज महिलाओं से पूछता इससे पहले ही इसकी भैंसे लाडो के खेत में घुस गई. फिर क्या था लाडो तौ जुट गई ताबड़तौड़ गलियां देने में - धुले को भी अर डा. साहिब को भी. आँख्यां आगै नुकशान किस पै उटे था. लाडो को बड़ी मुश्किल से चुप करवाया गया.
अब नारी-शक्ति के मौके पर प्रमाणिकरण की चर्चा करते हुए डा. साहिब ने फ़रमाया कि उस किसान के खेत में बौन्कियाँ गिर रही है. उस किसान को आप क्या समाधान बतायेंगी.
इतना सुनते ही प्रकासी बोली कि इस में घबरान की बात कोन्या. हर पौधा अपने ब्यौंत अनुसार ही फल डाटेगा.आधे-परधे फुल-बौंकी तौ कुदरती तौर पर ही झड़ जाया करै.
संस्काराधिन एवं स्वभावगत श्रीमति राजबाला कटारिया जींद से गरमागर्म जलेबी लेकर आई, हमेटि से कृषि अधिकारियों की टीम बर्फी लेकर आई तथा महिलाओं ने भी केलों व जलपान का जुगाड़ कर रखा था। सभी ने मिलजुल कर इस साझले जलपान का आनंद उठाया।
कार्यक्रम के अंत में डॉ. सुरेन्द्र दलाल ने इस कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिये सभी प्रतिभागियों का शुक्रिया अदा करते हुए कृषि अधिकारियों से रानी मलिक के खेत में कपास की फसल का मौके पर अवलोकन, निरिक्षण करने का आग्रह किया। रानी ने भी अभी तक अपनी कपास की फसल में कीटनाशकों का छिड़काव नहीं किया है तथा उसका खेत जींद के रासअते में ही पड़ता है। अधिकारियों की यह टीम रणबीर मलिक व पाल के साथ रानी मलिक के खेत में कपास की फसल का मौके पर अवलोकन, निरिक्षण करने के लिए निकल पड़ी। कपास की फसल का मौके पर अवलोकन, निरिक्षण करने के बाद ये  कृषि अधिकारी किसानों खासकर महिलाओं के कीट ज्ञान की तहदिल से भूरी-भूरी प्रसंशा करने के लिये अपने आप को रोक नही पाये।











Tuesday, September 21, 2010

महिला खेत पाठशाला का पंद्रहवां सत्र

महिला खेत पाठशाला का पंद्रहवां सत्र  आते आते इन महिला किसानों की हिचक टूट चुकी है. अब उन्हें ग्रुप बनाने के लिए भी नही कहना पड़ता. मीणा, सुदेश, सरोज, राजवंती, कमलेश गीता आपने-आपने समूह की महिलाओं को लेकर कपास के खेत में कीट निरिक्षण व अवलोकन के लिए आपने आप निकल पड़ती हैं| स्कूली छात्रों की तरह कंधे पर थैला, हाथ में कापी व पैन लिए दस पौधों पर करती हैं कीटों की गिनती| रस चूस कर हानि पहुचाने वाले कीट तो हर पौधे के केवल तीन पत्तों पर ही गिनती हैं| गिनेगी पहले सफ़ेद मक्खी, फिर हर तेला और अंत में चुरडा| इसके बाद पूरे पौधे पर सुंडियां गिनेंगी, बग गिनेंगी| इसके बाद पूरे पौधे पर मांसाहारी कीट गिनेंगी व इनको कापी में नोट करती रहेंगी| इसके बाद नीम के पेड़ की छावं में बैठकर कीटों की इस सारी जानकारी को  चार्टों पर उतारेंगी| आज भी इन महिलाओं ने सारा कुछ यही किया |

सबकी रिपोर्ट सुनने पर मालूम हुआ कि इस सप्ताह भी राजबाला के इस खेत में कपास की फसल पर तमाम नुक्शानदायक कीट हानि पहुँचाने के आर्थिक स्तर से काफी निचे हैं तथा हर पौधे पर मकड़ियों की तादाद भी अच्छी खासी है. इसके अलावा लेडी-बीटल, हथजोड़े, मैदानी-बीटल, दिखोड़ी, लोपा, छैल, व डायन मक्खियाँ, भीरड़, ततैये व अंजनहारी आदि मांसाहारी कीट भी इस खेत में नजर आये हैं.  थोड़ी-बहुत नानुकर के बाद सभी महिलाएं इस बात पर सहमत थी कि इस सप्ताह भी कपास के इस खेत में राजबाला को कीट नियंत्रण के लिए किसी कीटनाशक का छिड़काव करने की आवश्यकता नही है. यहाँ गौर करने लायक बात यह है कि रानी, बिमला, सुंदर, नन्ही, राजवंती, संतरा व बीरमती आदि को अपने खेत में कपास की बुवाई से लेकर अब तक कीट नियंत्रण के लिए कीटनाशकों के इस्तेमाल की आवश्यकता नहीं पड़ी. इनके खेत में कीट नियंत्रण का यह काम तो किसान मित्र मांसाहारी कीटों, मकड़ियों, परजीवियों तथा रोगाणुओं ने ही कर दिखाया.  सत्र के अंत में डा.सुरेन्द्र दलाल ने मौसम के मिजाज को मध्यनज़र रखते हुए इस समय कपास की फसल को विभिन्न बिमारियों से बचाने के लिए किसानों को 600 ग्राम कापर-आक्सी-क्लोराइड व 6 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का 150-200 लिटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने की सलाह दी.

           "ये कीड़े भी तो बीमारी सै, फेर यु स्प्रा कौनसी बीमारी खातिर बताओ सो, डा.जी ?", कमला नै आश्चर्य प्रकट किया!
या सुनकर डा.दलाल ने तो पीने के लिए पानी मांग लिया. पानी की घूंट घटक कर न्यूँ कहन लगा अक कमला अपने इस हरियाणा में तो लोग अपनी ब्याहता नै भी बीमारी कह दे सै. आप नै तो शुक्र है कि कीड़ों को ही बीमारी बताया सै.
कमला, वास्तव में तो बीमारी जीव के शरीर को प्रभावित करने वाली एक असामान्य स्थिति है जिसके  विशिष्ट लक्षण और चिन्ह होते हैं. पौधों का रोग इनकी महत्वपूर्ण शारीरिक प्रक्रियाओं के साथ दखल की व् खास लक्षण और चिन्ह वाली वो असामान्य स्थिति है, जो रोगजनक सूक्ष्मजीवों, परजीवी, प्रतिकूल पर्यावरणीय, आनुवंशिक, या पोषण कारक, आदि के कारण होता है.
     अपने इलाके में कपास की फसल में होने वाली कुछ बीमारियाँ ये हैं कमला. 
  • .पत्ती मरोड़ बीमारी: सबसे पहले ऊपर की कोमल कोपलों पर इसका असर दिखाई देता है. पत्ता जरूरत से ज्यादा ह्ऱा दिखाई देता है, छोटी नसे मोटी हो जाती हैं, पत्तियां उपर की तरफ मुद कर कप जैसी आकृति की हो जाती हैं. और खिन -खिन पर पत्तियों की निचली नसों पर पत्तिया बढवार भी दिखाई देती है. प्रकोपित पौधे छोटे रह जाते हैं, इन पर फ़ूल, कली व् टिंडे ना के बराबर लगते हैं, इनकी बढवार एकदम रुक जाती है और इसका उपज पर बहुत विपरीत असर पड़ता है. यह रोग एक विषाणु के कारण होता है. सफ़ेद-मक्खी इस विषाणु को एक पौधे से दुसरे तक फैलाने में सहायक है. याद रहे बीज, जमीन या छुआछात द्वारा यह रोग नही होता.
  • जिवाणुज अंगमारी(कुणिया धब्बों के रोग): यह कपास के मुख्य रोगों में से एक है. इस रोग के लक्ष्ण पत्तों पर कोणदार जलसिक्त धब्बों के रूप में नजर आते हैं.टहनियों व् टिंडों पर भी धब्बे पाए जाते हैं. ये धब्बे गहरे-भूरे होकर किनारों से लाल या जमुनी रंग के हो जाते हैं.

Tuesday, September 14, 2010

महिला खेत पाठशाला का चौदहवां सत्र

अंगिरा ने किया मिलीबग को नष्ट
निडाना गावँ में महिला खेत पाठशाला को चलते हुए  आज पूरे तीन महीने हो लिए. हर मंगलवार को राजबाला के खेत में लगती है यह पाठशाला. यह खेत राजबीर मलिक के पिग्ग्री फार्म के साथ लगता है. आज इस पाठशाला की चौदहवीं क्लास है. अब तो इस पाठशाला  की महिला किसान अनुशाशन का डंडा भी घुमाने लगी है. लेट होने पर या अनुपस्थित हो जाने पर कारण पूछने लगती है. राजवन्ती ने बताया कि वह पिछली क्लास में वायरल बुखार होने की वजह से नही आ सकी. राजबाला ने बताया कि उसके छोरे विनोद का हर्निया का आपरेशन हुआ है. आज भी सीधी हस्पताल से ही आ रही हूँ. सुंदर नन्ही भी बीमार होने की वजह से पिछले सत्र में उपस्थित नहीं हो सकी थी. बिमला पंडित के पिता जी का देहांत हो गया. दाग पर जाने के कारण यहाँ नहीं आ सकी थी. इससे एक बात तो साफ है कि घरबार-खेतक्यार के कामों के साथ-साथ अब सामाजिक सरोकारों में भी महिलाओं की भागेदारी व जिम्मेदारी लगातार तेज़ी से बढ़ रही है.शायद इसीलिए बेहतर कीट प्रबंधन के लिए समग्र दृष्टि की आवश्यकता को महसूस करते हुए निडाना गावँ की ये महिला किसान स्थानीय कीटों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाने में जुटी हुई हैं. हर मंगलवार को  कीटों की सही पहचान, इनका देसी नामकरण, इनके क्रियाकलाप, इनका जीवन-चक्र एवं इनके शत्रु आदि के बारे में ग्रुप डिस्कसन व प्रशिक्षकों की मदद से जानकारी में इजाफा किया जाता है.अपनी कपास की फसल में चोबने से लेकर अब तक राजवंती, बिमला, बीरमती, नन्ही, सुंदर, रानी, राजबाला, सरोज, संतरा, अनीता, गीता व सुदेश को कीट नियंत्रण के लिए कीटनाशकों के एक छिडकाव की भी जरूरत नही पड़ी. इसका मतलब यह नही कि इनकी फसल में हानिकारक कीट आये ही नही. तेला भी आया, सफेद मक्खी भी आई, चुर्डा भी आया, माईट भी आई व मिलीबग भी आया. पर ये कीट इनके खेतों में नुकशान की आर्थिक दहलीज को पार नही कर पाए. मिलीबग के पैर तो क्राईसोपा के बच्चों, लपरो के प्रौढ़, हाफलों के गर्ब फंगिरा, जंगिरा व्  अंगिरा ने ही नहीं लगने दिए.कहीं लुका-छिपा बच भी गया तो ताप-आब की मेहरबानी के चलते सफ़ेद, काली व् गुलाबी रंग के फ़फुन्दीय रोगाणुओं ने इस का सफाया कर डाला.  सफेद-मक्खी को एनकार्सिया,  बिन्दुवा चुर्ड़ा, एंथु बुग्ड़ा व् कराईसोपा ने नहीं जमने दिया.  तेले को एंथु बुग्ड़ा, कराईसोपा व् मकड़ियों ने काबू में रक्खा. माईट व् चुरड़े का खसम छ: बिंदुवा चुरडा बना रहा. इन महिलाओं ने चुरड़े का खून पीते हुए दस्यु बुगड़े को भी देखा है.

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रनबीर- लेडी बीटल का गर्ब दिखाते हुए



Tuesday, September 7, 2010

महिला खेत पाठशाला का तेरहवां सत्र


डा.कमल लैपटाप पर 

अवलोकन एवं निरिक्षण 
एकाग्रता 
चुघड़ो बीटल

हथजोड़े की अंडेदानी 
हथजोड़ा 
सैनिक बीटल 
मैदानी बीटल 
नेफड़ो का प्रौढ़
सिम्मड़ो का गर्ब
लपरो बीटल 
डा. सूरा सेब भेंट करते हुए
हथजोड़े की अंडेदानी 


हालाँकि आज के दिन एक तरफ तो राष्ट्रिय हड़ताल का आह्वान था तथा दूसरी तरफ सुबह सात बजे से ही तेज़ बारिस को रही थी. फिर भी आज दिनांक 7 /9 /10 को निडाना गावँ में चल रही महिला खेत पाठशाला के तेरहवें सत्र का आयोजन किया गया. सत्र का आरंभ रनबीर मलिक, मनबीर रेड्हू व डा.कमल सैनी के नेतृत्व में महिलाओं द्वारा अपने पिछले काम की विस्तार से समीक्षा तथा दोहराई से हुआ. डा.कमल सैनी ने लैपटाप के जरिये महिलाओं को उन तमाम मांसाहारी कीटों के चमचमाते फोटो दिखाए जो अब तक निडाना के खेतों में पकड़े जा चुके हैं. इनमे लोपा, छैल, डायन, सिर्फड़ो व टिकड़ो आदि छ किस्म की तो मक्खियाँ ही थी. इनके अलावा एक दर्जन से अधिक किस्म की लेडी-बीटल, पांच किस्म के बुगड़े, दस प्रकार की मकड़ी, सात प्रजाति के हथजोड़े व अनेकों प्रकार के भीरड़-ततैये-अंजनहारी आदि परभक्षियों के फोटो भी महिलाओं को दिखाए गये. गिनती करने पर मालुम हुआ कि अभी तक कुल मिलाकर सैंतीस किस्म के मित्र कीटों की पहचान कर चुके हैं जिनमें से छ किस्म के खून चुसक कीड़े व इक्कतीस तरह के चर्वक किस्म के परभक्षी हैं. स्लाइड शौ के अंत में महिलाओं को मिलीबग को कारगर तरीके से ख़त्म करने वाली अंगीरा, फंगिरा व जंगिरा नामक सम्भीरकाओं के फोटो दिखाए गये. इस मैराथन समीक्षा के बाद महिलाएं कपास की फसल का साप्ताहिक हाल जानने के लिए पिग्गरी फार्म कार्यालय से निकल कर राजबाला के खेत में पहुंची. याद रहे डिम्पल की सास का ही नाम है-राजबाला. आज निडाना में क्यारीभर बरसात होने के कारण राजबाला के इस खेत में भी गोडै-गोडै पानी खड़ा है. इस हालत में जुते व कपड़े तो कीचड़ में अटने ही है. इनकी चिंता किये बगैर महिलाएं अपनी ग्रुप लीडरों सरोज, मिनी, गीता व अंग्रेजो के नेतृत्व में कीट अवलोकन, सर्वेक्षण, निरिक्षण व गिनती के लिए कपास के इस खेत में घुसी. महिलाओं के प्रत्येक समूह ने दस-दस पौधों के तीन-तीन पत्तों पर कीटों की गिनती की. इस गिनती के साथ अंकगणितीय खिलवाड़ कर प्रति पत्ता कीटों की औसत निकाली गई. महिलाओं के हर ग्रुप ने चार्टों क़ी सहायता से अपनी-अपनी रिपोर्ट सबके सामने प्रस्तुत की. सबकी रिपोर्ट सुनने पर मालूम हुआ कि इस सप्ताह भी राजबाला के इस खेत में कपास की फसल पर तमाम नुक्शानदायक कीट हानि पहुँचाने के आर्थिक स्तर से काफी निचे हैं तथा हर पौधे पर मकड़ियों की तादाद भी अच्छी खासी है. इसके अलावा लेडी-बीटल, हथजोड़े, मैदानी-बीटल, दिखोड़ी, लोपा, छैल, व डायन मक्खियाँ, भीरड़, ततैये व अंजनहारी आदि मांसाहारी कीट भी इस खेत में नजर आये हैं.  थोड़ी-बहुत नानुकर के बाद सभी महिलाएं इस बात पर सहमत थी कि इस सप्ताह भी कपास के इस खेत में राजबाला को कीट नियंत्रण के लिए किसी कीटनाशक का छिड़काव करने की आवश्यकता नही है. यहाँ गौर करने लायक बात यह है कि रानी, बिमला, सुंदर, नन्ही, राजवंती, संतरा व बीरमती आदि को अपने खेत में कपास की बुवाई से लेकर अब तक कीट नियंत्रण के लिए कीटनाशकों के इस्तेमाल की आवश्यकता नहीं पड़ी. इनके खेत में कीट नियंत्रण का यह काम तो किसान मित्र मांसाहारी कीटों, मकड़ियों, परजीवियों तथा रोगाणुओं ने ही कर दिखाया. ठीक इसी समय कृषि विभाग के विषय विशेषग डा.राजपाल सूरा भी महिला खेत पाठशाला में आ पहुंचे. रनबीर मलिक ने खेत पाठशाला में पधारने पर डा.राजपाल सूरा का स्वागत किया. परिचय उपरांत, डा.सूरा ने इन महिलाओं से कीट प्रबंधन पर विस्तार से बातचीत की. उन्होंने बिना जहर की कामयाब खेती करने के इन प्रयासों की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए, महिलाओं से इस काम को अन्य गावों में भी फैलाने की अपील की. इसके बाद अंग्रेजो ने महिलाओं को सेब वितरित किये. ये सेब डा.सूरा स्वयं के खर्चे से जींद से ही खरीद कर लाये थे. जिस समय महिलाएं सेब खा रही थी ठीक उसी समय मनबीर व रनबीर कहीं से गीदड़ की सूंडी समेत कांग्रेस घास की एक ठनी उठा लाये. इसे महिलाओं को दिखाते हुए, उन्होंने महिलाओं को बताया कि यह गीदड़ की सूंडी वास्तव में तो मांसाहारी कीट हथजोड़े की अंडेदानी है. इसमें अपने मित्र कीट हथजोड़े के 400 -500 अंडे पैक हैं. सत्र के अंत में डा.सुरेन्द्र दलाल ने मौसम के मिजाज को मध्यनज़र रखते हुए इस समय कपास की फसल को विभिन्न बिमारियों से बचाने के लिए किसानों को 600 ग्राम कापर-आक्सी-क्लोराइड व 6 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का 150-200 लिटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने की सलाह दी.