Wednesday, September 4, 2013

महिला खेत पाठशाला दिनांक 27-08-13

"ऐ बीटल म्हारी मदद करो हमने  तेरा ऐ सहारा है" इसी गीत के साथ महिला खेत  कीट पाठशाला,ललितखेडा का आयोजन हुआ। गीत से साफ़ पता चलता है कि आज हमें इन कीटो की कितनी जरुरत है। जैसे मनुष्य का पेड़ पोधों से रिश्ता है ऐसे ही इन कीटो का मनुष्य और पोधों से है।  अगर कीटो को मनुष्य और पोधो की जिंदगी से निकाल दिया जाए तो इन दोनों का जीवन चक्र अस्त व्यस्त हो जायेगा। तो इन्ही कीटो की अहमियत जानने और सबको बताने के लिए आयोजन हुआ महिला खेत पाठशाला का।  वैसे तो पाठशाला चलती ही आ रही थी यह पाठशाला इसलिए अहम् थी क्योंकि इसमें आये हुए थे अतिरिक्त उपायुक्त जयबीर सिंह आर्य,दूरदर्शन केंद्र हिसार के निदेशक जिले सिंह जाखड़,  जिला कृषि उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग, जिला बागवानी अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, कबड्डी फैडरेशन ऑफ इंडिया के उपप्रधान समरवीर कौशिक, एच.सी.एल. कंपनी के मैनेजर सुभाष कौशिक, डा. सुरेंद्र दलाल की धर्मपत्नी कुसुम दलाल,बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा। चूँकि ये महिला खेत पाठशाला थी तो मंच से लेकर सारे काम काज महिलाओं द्वारा ही संभाले जा रहे थे।     
अतिरिक्त उपायुक्त जयबीर सिंह आर्य ने कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों द्वारा अंधाधुध कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे मनुष्य का शरीर भिन्न-भिन्न प्रकार के घातक रोगों की चपेट में आ रहा है। उन्होंने कहा कि कीट प्रबंधन की जानकारी हर किसान को उपलब्ध करवाने के लिए ब्लॉक स्तर पर खेत पाठशालाएं लगाने का कार्यक्रम तैयार किया जाएगा। इसके बाद इन पाठशालाओं को ग्राम स्तर पर भी आयोजित किया जाएगा। जिला बागवानी अधिकारी डा. बलजीत भ्याण ने महिलाओं के कीट  ज्ञान को सराहा और कहा कि जिस तरह ये महिलाये पहली बार मंच पर बोल रही थी,उनकी हिम्मत व् जज्बा काबिले तारीफ है। कबड्डी फैडरेशन ऑफ इंडिया के उपप्रधान समरवीर कौशिक और एच.सी.एल. कंपनी के मैनेजर सुभाष कौशिक ने कहा कि जींद जिले के किसानों ने उन्हें एक नई राह दिखाने का काम किया है। यहां से कीटों के बारे में उन्हें जो जानकारी मिली है, वह इस जानकारी को आगे बढ़ाने का काम करेंगे तथा अपने क्षेत्र के किसानों को भी इन पाठशालाओं में शामिल कर इस मुहिम को आगे बढ़ाने का काम करेंगे।  हिसार दूरदर्शन के केन्द्र निदेशक जिले सिंह जाखड़ ने महिलाओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि कीट प्रबंधन एवं कीट साक्षरता अभियान चलाने वाला जींद जिला पूरे विश्व में अग्रणी है। इसके लिए अभियान के जनक डा. सुरेन्द्र दलाल का उन्होंने धन्यवाद किया और कहा कि डा. सुरेन्द्र दलाल ने लोगों को जहर मुक्त थाली प्रदान करने का जो सपना देखा था। उसे पूरा करने में दूरदर्शन की टीम पूरा सहयोग करेगी। उन्होंने कहा कि कीट प्रबंधन विषय पर महिलाओं द्वारा बनाए गए गीतों को रिकार्ड कर दूरदर्शन पर प्रस्तुत कर दूरदर्शन के लाखों दर्शकों को कीट प्रबंध एवं कीट साक्षरता के  बारे में जागरूक किया जाएगा। जिला कृषि उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि जब तक इस काम को व्यक्तिगत रूप से नहीं लिया जाए तब तक हमारी रूचि इसमें नहीं बनेगी। कुसुम दलाल ने महिलाओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि  जो जहरमुक्त थाली का सपना डॉ दलाल ने देखा था, वह कुछ हद तक सफलता  की राह पर है और इसके लिए मै किसानो व् उनके सहयोगी साथियों की धन्यवादी हूँ जो निरंतर इस काम को आगे बढाए हुए है। उन्होंने आगे कहा कि  अगर किसान, प्रशासन, खाप प्रतिनिधि व् मीडिया अगर अपना थोडा और योगदान दे तो हमारी थाली बहुत जल्दी ही जहरमुक्त हो सकती है। कीट प्रबंधन अभियान का नेतृत्व कर रहे कमल सैनी ने कहा कि कपास सबसे नाजुक फसल है और सबसे ज्यादा कीड़े इसकी तरफ ही आकर्षित होते है इसलिए हमने पाठशाला के लिए कपास की फसल चुनी है उन्होंने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा की अगर किसान 20-25 कीटों के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर लें तो फसल पर हजारों की लागत में खर्च होने वाले दवाई एवं खाद के पैसे को बचाया जा सकता है और इसके साथ-साथ ही अनेक बीमारियों से भी लोगों को बचाया जा सकता है। महिला कीटाचार्य अंग्रेजो देवी, मनीषा देवी, कमलेश देवी,  संतोष देवी, गीता, राजवंती, मीना मलिक, कविता, व अन्य महिला कीटाचार्य किसानों ने अपने विचार सांझा करते हुए बताया कि उन्होंने किस तरीके से कीटों की पहचान तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी जुटाई और अब वह बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए किस तरह से अच्छा उत्पादन लेकर अपने परिवार को जहरमुक्त भोजन उपलब्ध करवा रही हैं। पाठशाला के अंत में बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने सभी का धन्यवाद किया ।  


Friday, October 26, 2012

महिलाओं ने कीटों की तरफ बढ़ाया दोस्ती का हाथ


पोधों पर कीटों की पहचान करती महिलाएं
पौधों कीटों की संख्या दर्ज करती महिलाएं।

 प्रजनन क्रिया करते हुए हफलो नामक लेड़ी बिटल
फसल में जिन कीटों को देखकर किसान अकसर डर जाते हैं और उन्हें अपना दुश्मन समझकर उनके खात्मे के लिए स्प्रे टंकियां उठा लेते हैं, उन्हीं कीटों को ललीतखेड़ा व निडाना गांव की महिलाएं किसान का सबसे बड़ा दोस्त बताती हैं। इसलिए इन महिलाओं ने कीटों की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। कीटों ने भी इनकी भावनाओं को समझते हुए इनके साथ पहचान बना ली है। इसलिए तो महिलाओं  के खेत में पहुंचते ही कीट इनके पास आकर बैठ जाते हैं। ललीतखेड़ा गांव में लगने वाली महिला किसान पाठशाला में अकसर इस तरह के नजारे देखने को मिल जाते हैं। बुधवार को आयोजित महिला किसान पाठशाला में भी इसी तरह का वाक्या सामने आया, जब एक मासाहारी दीदड़ बुगड़ा शांति नामक एक महिला के चेहरे पर आकर बैठ गया। शांति शांत ढंग से बैठी रही और पाठशाला में मौजूद अन्य सभी महिलाएं लैंस की सहायता से उसे देखने में मशगुल हो गई। अंग्रेजो ने महिलाओं को दीदड़ बुगड़ा दिखाते हुए बताया कि यह व इसके बच्चे खून चूसक होते है। इस दौरान पिंकी ने सवाल उठाया कि यह किस का खून चूसता है। मनीषा ने जवाब देते हुए कहा कि आज के दिन कपास की फसल में सफेद मक्खी, हरा तेला व चूराड़े ही मौजूद हैं। इसलिए दीदड़ बुगड़ा इन्ही कीटों का खून चूसता है। शीला ने महिलाओं को सलेटी भूंड दिखाते हुए बताया कि आज के दिन कपास में सलेटी भूंड  की तादात प्रति पौधा एक की है और यह शाकाहारी है तथा पत्तों को खाकर अपना गुजारा करता है। इसी दौरान शीला ने महिलाओं को प्रजनन क्रियाएं करते हुए हफलो नामक लेड़ी बिटल दिखाते हुए कहा कि इसके बच्चे व इसका प्रौढ़ दोनों मासाहारी होते हैं जो शाकाहारी कीटों को खा कर अपना वंश चलाते हैं। सविता ने सर्वेक्षण के दौरान महिलाओं को हरिया बुगड़े को पत्तों से रस चूसते हुए दिखाया। रणबीर मलिक ने बताया कि कपास की फसल में 2 से 28 प्रतिशत तक पर परागन होता है और यह केवल कीटों से ही संभव है। अगर किसान फसल में मौजूद कीटों के साथ छेड़खानी न करें तो पर पररागन के कारण 2 से 28 प्रतिशत तक फूल से टिंडे ज्यादा बनने की संभावाना होती है। मनबीर रेढू ने महिलाओं द्वारा खेत का सर्वेक्षण कर प्रस्तुत की गई रिपोर्ट से तैयार किए गए बही-खाते से हिसाब लगाकर बताया कि फिलहाल कपास की फसल में कोई भी शाकाहारी कीट हानि पहुचाने की स्थिति में नहीं है। मनबीर रेढू की इस बात पर पाठशाला में मौजूद कृषि अधिकारियों, खाप पंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा व सभी महिलाओं ने सहमती जताई। विषय विशेषज्ञ डा. राजपाल सूरा ने महिलाओं को राजपुरा-माडा तथा पाली गांव का उदहारण देते हुए बताया कि राजपुरा-माडा गांव में किसानों द्वारा पाली गांव से ज्यादा कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए पाली के मुकाबले राजपुरा-माडा गांव में कैंसर के मरीजों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। उपमंडल कृषि अधिकारी सुरेंद्र मलिक ने महिलाओं को गोबर का ढेर लगाने की बजाए कुरड़ी में गोबर डालने की सलाह दी। खाप पंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा ने किसान व कीटों की इस लड़ाई की तुलना महाभारत की लड़ाई से करते हुए कहा कि कीटों की तीन जोड़ी टांग व दो जोड़ी पंख होते हैं तथा कीटों में प्रजनन की क्षमता भी ज्यादा होती है। इसलिए इस जंग में किसानों की अपेक्षा कीटों का पलड़ा भारी है। ढांडा ने कहा कि किसान के पास कीटों को मारने के लिए कीटनाशक शस्त्र के अलावा कुछ नहीं है जबकि कीटों के पास अपने बचाव के लिए अस्त्र व शास्त्र दोनों हैं। इस अवसर पर उनके साथ सहायक पौध संरक्षण अधिकारी अनिल नरवाल व खंड कृषि अधिकारी जेपी कौशिक भी मौजूद थे। 


अपने चेहरे पर बैठे कीट को दिखाती महिला।

Wednesday, October 10, 2012

कृषि के क्षेत्र में भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलें महिलाएं

   ललीतखेड़ा गांव में बुधवार को महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला में ललीतखेड़ा, निडाना व निडानी की महिलाओं ने भाग लिया। महिलाओं ने कीट निरीक्षण, अवलोकन के बाद कीट बही खाता तैयार किया। इस बार कीट अवलोकन के दौरान महिलाओं ने कपास की फसल में मौजूद लाल बाणिये का भक्षण करते हुए एक नए मासाहारी कीट को पकड़ा।
 फसल में कीटों का निरीक्षण करती महिलाएं। 

महिलाओं को कीटों के बारे में जानकारी देते पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल। 
पाठशाला की मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो ने महिलाओं को बताया कि अब तक उन्होंने कपास की फसल में सिर्फ लाल बाणिये का खून पीते हुए मटकू बुगड़े को ही देखा था। मटकू बुगड़ा अपने डंके की सहायता से लाल बाणिये का खून पीकर इसके कंट्रोल करता था लेकिन इस बार महिलाओं ने लाल बाणिये का खात्मा करने वाले एक नए मासाहारी कीट की खोज की है। यह कीट इसका खून पीने की बजाए इसको खा कर कंट्रोल कर अपनी वंशवृद्धि करता है। अंग्रेजो ने कहा कि इससे यह बात आइने की तरह साफ है कि कीटों को कंट्रोल करने की जरुरत नहीं है। अगर जरुरत है तो सिर्फ कीटों की पहचान व इनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी जुटाने की। अगर किसानों को अपनी फसल में समय-समय पर आने वाले मासाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान व उनके क्रियाकलापों का ज्ञान हो जाए तो किसानों का जहर से पीछा छूट जाएगा। बिना ज्ञान के कीटनाशक से छुटकारा संभव नहीं है। मास्टर ट्रेनर मीना मलिक ने बताया कि जिस तरह अन्य क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, वैसे ही कृषि के क्षेत्र में भी महिलाओं को पुरुषों के साथ आगे आना होगा। मलिक ने कहा कि विवाह, शादी जैसे खुशी के मौकों पर महिलाओं को अन्य गीतों की बजाए कीटों के  गीत गाने चाहिएं, ताकि अधिक से अधिक लोगों तक यह मुहिम फैल सके। उन्होंने कहा कि जहर से मुक्ति मिलने में केवल किसानों की ही जीत नहीं है, बल्कि इससे हर वर्ग के लोगों को लाभ होगा। क्योंकि हमारे शास्त्रों में भी पहला सुख निरोगी काया का बताया गया है। जब तक इंसान स्वास्थ नहीं होगा तब तक वह किसी भी कार्य को अच्छे ढंग से नहीं कर पाएगा। उन्होंने कहा कि किसानों में जो भय व भ्रम की स्थित पैदा हो चुकी है हमें उस स्थिति को स्पष्ट करना होगा। किसानों को फसल में आने वाली बीमारी व कीटों के बीच के अंतर के बारे में जानकारी होनी जरुरी है। जब तक यह स्थित स्पष्ट नहीं होगी तब तक किसानों के अंदर से भ्रम को बाहर नहीं निकाला जा सकता है। सविता ने बताया कि इस समय उनकी फसल की दूसरी चुगवाई चल रही है लेकिन पाठशाला में आने वाली एक भी महिला को अब तक फसल में एक बूंद कीटनाशक की जरुरत नहीं पड़ी है। इस अवसर पर उनके साथ पाठशाला के संचालक सुरेंद्र दलाल, मास्टर ट्रेनर रणबीर मलिक व मनबीर रेढ़ू भी मौजूद थे। बराह कलां बारहा खाप के प्रधान भी मौजूद थे।

Wednesday, October 3, 2012

देश को जहर से मुक्ति दिलवाने के लिए लड़ाई लड़ रही हैं महिलाएं

 महात्मा गांधी ने सत्य,अंहिसा व चरखे को अपना हथियार बनाकर देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी। उसी प्रकार ललीतखेड़ा व निडाना की महिलाएं भी बापू के रास्ते पर चलकर देश को जहर से मुक्ति दिलवाने के लिए लड़ाई लड़ रही हैं। इस लड़ाई में विजयश्री के लिए इन महिलाओं ने कीट ज्ञान को अपना हथियार बनाया है। महिलाओं ने कीट विज्ञान के सहारे अपना स्थानीय कीट ज्ञान पैदाकर किसानों को एक नया रास्ता दिखाकर बापू के विचारों और औजारों की सार्थकता को सिद्ध किया है। यह बात बराह कलां बारहा खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कीट कमांडो महिलाओं के कीट ज्ञान की प्रशांसा करते हुए कही। ढांडा बुधवार को ललीतखेड़ा गांव में आयोजित महिला किसान पाठशाला में बोल रहे थे। 
ढांडा ने महिलाओं की कीट ढुंढऩे की दक्षता व कौशल की महता को स्वीकार करते हुए कहा कि कीटों से महिलाओं का पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा वास्ता रहा है। इसके अलावा महिलाएं बारीक काम भी करती रहती हैं। इसलिए भी छोटे-छोटे कीट इनकी पकड़ में जल्दी ही आ जाते हैं। पाठशाला में महिला किसानों ने कीटों की गिनती, अवलोकन, सर्वेक्षण व निरीक्षण के बाद कीट बही खाता तैयार किया। मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो ने बताया कि कीट अवलोकन के दौरान उन्होंने कपास की फसल में काला बाणिया नजर आया है, जो कपास के फावे के बीच कच्चे बीज के पास अपने अंड़े देता है। इसके निम्प व प्रौढ़ कच्चे बीज का रस चूसकर अपना जीवनचक्र चलाते हैं। वैसे तो दुनिया में इन कीटों को खाने वाले कम ही कीट देखे गए हैं, लेकिन यहां की महिलाओं ने काले बाणिये के बच्चे व अंड़ों का भक्षण करते हुए लेड़ी बिटल का गर्भ ढूंढ़ लिया है। इसके अलावा महिलाओं ने सुंदरो, मुंदरो नामक जारजटिया समूह के मासाहारी कीटों को भी ढूंढ़ा है। महिलाओं ने कपास की फसल में चेपे के आक्रमण की शुरूआत के साथ ही चेपे का भक्षण करने वाले ङ्क्षसगड़ू नामक लेड़ी बिटल के बच्चे भी देखे। 
कीट ज्ञान में हासिल की माहरत
ललीतखेड़ा व निडाना गांव की महिलाओं ने अपने कीट ज्ञान में वृद्धि करने के लिए लैंस, कापी व पैन को अपना औजार बनाया है। फसल में कीट सर्वेक्षण के दौरान महिलाएं लैंस की मार्फत फसल में मौजूद छोटे-छोटे कीटों की पहचान कर उनके क्रियाकलापों को अपनी नोट बुक में दर्ज कर अपने कीट ज्ञान में वृद्धि करती हैं। अपनी सुझबुझ व पैनी नजर से इन महिलाओं ने कीट ज्ञान में माहरत हासिल की है। 
उर्वकों का कम प्रयोग कर लेती हैं अच्छा उत्पादन
 फसल में कीटों का निरीक्षण करती महिलाएं।
 लाल बाणिये का शिकार करते हुए मटकू बुगड़ा। 
इन मास्टर ट्रेनर महिलाओं ने कीट ज्ञान ही नहीं बल्कि कम उर्वरकों का प्रयोग कर अच्छा उत्पादन लेने के गुर भी सीखे हैं। महिला किसानों द्वारा फसल में उर्वक सीधे जमीन में डालने की बजाये उर्वरकों का घोल तैयार कर पत्तों पर उनका छिड़काव किया जाता है। इससे उर्वरकों की बचत भी होती है और उत्पादन में भी वृद्धि होती है। इसमें सबसे खास बात यह है कि इन महिलाओं ने पांच माह की फसल में अभी तक एक छटाक भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। 
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Wednesday, September 19, 2012

समय पर पौधों को पर्याप्त खुराक देकर पैदावार में की जा सकती है बढ़ोतरी


 
    ललीतखेड़ा गांव में बुधवार को पूनम मलिक के खेत में महिला किसान पाठशाला का आयोजन किया गया। महिलाओं ने पाठशाला में कीट सर्वेक्षण के बाद कीट बही खाता तैयार किया। कीट सर्वेक्षण के साथ-साथ महिलाओं ने कपास के पौधों, फूलों, टिंडों व बोकियों की गिनती कर पौधों का भी बही खाता तैयार किया। महिलाओं ने 6 ग्रुप बनाकर 10-10 पौधों का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के बाद महिलाओं ने जामुन के पेड़ के नीचे बैठकर चार्ट पर अपना बही खाता तैयार किया। मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो ने सर्वेक्षण के बाद तैयार किए गए आंकड़ों की तरफ इशारा करते हुए बताया कि कपास के इस खेत में इस सप्ताह शाकाहारी कीटों की संख्या नामात्र है। इस सप्ताह फसल में लाल व काला बानिया ही नजर आए हैं। पूनम मलिक ने महिलाओं को बताया कि उन्होंने कीट सर्वेक्षण के दौरान खेत में लाल व काला बानिए के अंडे भी देखे हैं। पूनम ने बताया कि लाल बानिया अपने अंड़े कपास के पौधे के पास गले-सड़े पत्तों के नीचे व जमीन के ऊपर देता है तथा काला बानिया कपास के खिले हुए टिंडों के अंदर देता है। सविता ने महिलाओं द्वारा किए गए कपास के पौधों के सर्वेक्षण के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस प्रयोगधीन खेत में एक पौधे पर औसतन 80 टिंडे, 2 फूल व 22 बोकियां मिली हैं। सविता ने बताया कि अगर इस समय पौधों को पर्याप्त खुराक मिल जाए तो बोकियों, फूलों व टिंडों को अच्छी तरह विकसित कर अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। मीना मलिक ने बताया कि पाठशाला में आने वाली महिलाओं को अभी तक अपने खेत में एक बूंद भी कीटनाशक के प्रयोग की जरुरत नहीं पड़ी है। महिलाओं ने बताया कि उनके लिए बड़ी खुशी की बात है कि उन्होंने अपनी मेहनत के बलबूते खुद का ज्ञान पैदा कर कीटनाशकों को धूल चटा दी है। 

टीवी के माध्यम से सिखाएंगी जहर से मुक्ति के गुर

 पाठशाला में मास्टर ट्रेनर के साथ विचार-विमर्श करती महिलाएं।

: कपास की फसल में कीट सर्वेक्षण करती महिलाएं। 
महिला किसान पाठशाला के अलावा महिलाएं टीवी के माध्यम से भी किसानों के साथ अपने अनुभव बांटेंगी। वीरवार को लोकसभा चैनल पर सायं 5.30 बजे ‘ज्ञान दर्पण’ कार्यक्रम में, शुक्रवार को सायं 5.30 बजे ‘सार्इंस दिस वीक’ कार्यक्रम में तथा सोमवार को डीडी नैशनल चैनल पर सायं 6.30 बजे ‘कृषि दर्शन’ कार्यक्रम में किसानों को कीट नियंत्रण के माध्यम से जहर से छुटकारा पाने के गुर सिखाएंगी। 
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Wednesday, September 12, 2012

किसान को फायदा या नुकशान पहुंचाने नहीं अपना जीवनचक्र चलाने के लिए फसल में आते हैं कीट

        जिले के ललीतखेड़ा गांव में बुधवार को महिला किसान पूनम मलिक के खेत में महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला में ललीतखेड़ा, निडाना व निडानी गांव की महिलाओं ने भाग लिया। पाठशाला की शुरुआत महिलाओं ने कपास कीट सर्वेक्षण के साथ की। महिलाओं ने कपास की फसल में लगभग एक घंटे तक कीट अवलोकन व निरीक्षण किया। कीट सर्वेक्षण के बाद महिलाओं ने कीट बही खाता तैयार किया। इसके साथ-साथ महिलाओं ने कपास की फसल में मौजूद पर्णभक्षी कीटों व मासाहारी कीटों के क्रियाकलापों के बारे में भी अपने-अपने अनुभव पाठशाला में रखे।  
 कपास के खेत कीटों का अवलोकन करती महिलाएं।

 कपास की फसल में मौजूद कीटों का बही खाता दर्ज करती महिलाएं। 
मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो ने बही खाते में दर्ज आंकड़ों की तरफ इशारा करते हुए महिलाओं को बताया कि आंकड़ों के अनुसार अभी तक इस कपास की फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक की जरुरत नहीं है। सुदेश ने महिलाओं को बताया कि कोई भी कीट हमारा मित्र या दुश्मन नहीं होता। इसलिए हमें कीटों को मित्र या दुश्मन कीटों के नजरिए से नहीं देखना चाहिए। शाकाहारी कीट पौधों पर अपना जीवन यापन करने के लिए आते हैं और पौधों के पत्ते, फूल इत्यादि खाकर अपनी वंशवृद्धि करते हैं। मासाहारी कीटों को अपना जीवन यापन करने के लिए मास की जरुरत होती है। इसलिए वे अपना पेट भरने के लिए मास की तलाश में शाकाहारी कीटों के साथ-साथ पौधों पर आ जाता हैं। कोई भी कीट किसानों को नुकसान व लाभ पहुंचाने के लिए पौधों पर नहीं आता है। कमलेश ने बताया कि फिलहाल कपास के पौधों को पर्णभक्षी कीटों की सबसे ज्यादा जरुरत है। क्योंकि पर्णभक्षी कीट पौधों के ऊपरी हिस्सा के पत्तों में छेद कर नीचे के पत्तों के लिए प्रकाश संशलेषण का रास्ता तैयार करते हैं। इससे नीचे के पत्ते पौधे के लिए पर्याप्त भेजन बनाने में सक्षम हो जाते हैं। जिससे पौधे पर भरपूर मात्रा में फल आता है। लेकिन अधिकतर किसान पत्तों को कटा देखकर घबरा जाता हैं और कीटनाशकों के माध्यम से कीटों को कंट्रोल करने का प्रयास करते हैं। किसानों की इस जद्दोजहद में शाकाहारी कीटों के साथ-साथ मासाहारी कीट भी मारे जाते हैं। जिससे आगे चलकर फसल पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए हमें कीटों को कंट्रोल नहीं पहचानने की जरुरत है।
फोटो कैप्शन

Wednesday, September 5, 2012

अज्ञान के कारण चक्रव्यूह में फंस रहे किसान : शर्मा

खाद्य एवं कृषि विशेषज्ञ ने किसान-कीट विवाद पर किसानों के साथ की चर्चा

   आज हमारे देश के किसनों  की हालत भी पांडू पुत्र अभिमन्यू की तरह है, जिसे चक्रव्यूह में प्रवेश करना तो आता था, लेकिन उसे उस चक्रव्यूह से बाहर निकलना नहीं आता था। वैसा ही हाल हमारे किसानों का है, जिन्हें कृषि क्षेत्र में नई-नई तरीकब अपना कर एक ऐसे चक्रव्यूह में फंसाया जा रहा है, जिसमें किसान दाखिल तो आसानी से हो जाते हैं, लेकिन उस चक्रव्यूह से बाहर निकलना उनके बस की बात नहीं है। यह बात विश्व विख्यात खाद्य एवं कृषि विशेषज्ञ डा देवेंद्र शर्मा ने मंगलवार को निडाना गांव में आयोजित किसान खेत पाठशाला में किसान-कीट विवाद पर किसानों के साथ चर्चा करते हुए कही। इस अवसर पर पाठशाला में खाप पंचायत की तरफ  से ढुल खाप प्रधान इंद्र सिह ढुल, खटकड खेड़ा खाप के प्रधान दलेल खटकड़, जाटू खाप प्रधान संदीप ढांड़ा, 84 खाप प्रधान भिवानी से राज सिंह घणघस, किसान क्लब के प्रधान फूल सिंह श्योकंद, बागवानी विभाग से डीएचओ डा. बलजीत सिंह  भयाणा, मिट्टी एवं संरक्षण विभाग जींद से डा. मीना सिहाग भी विशेष रूप  से मौजूद थी। पंचायत का संचालन खाप पंचायत के संचालक कुलदीप सिंह ढांडा ने किया।
डा देवेंद्र शर्मा ने कहा कि ज्यों-ज्यों कीटनाशकों का प्रयोग अधिक होता है, त्यों-त्यों कुदरत कीटों को भी उन कीटनाशकों से बचाव के लिए अधिक ताकत प्रदान कर देती है, जिससे दो-चार वर्ष बाद कीटनाशक बेअसर हो जाते हैं और कंपनियों फिर से उन कीटों को मारने के लिए नए कीटनाशक तैयार करती है। इस प्रकार नए-नए कीटनाशक व बीज तैयार कर कुछ मुनाफाखोर किसानों की जेबों पर डाका डाल रहे हैं।  इस प्रकार पूरी प्लांनिग के तहत किसानों को इस चक्रव्यूह में धकेला जाता है। डा. शर्मा ने आंध्रप्रदेश का उदहारण देते हुए बताया कि कई वर्ष पहले आंध्रप्रदेश के किसानों ने भी निडाना के किसानों की तरह कीटनाशक रहित खेती की मुहिम चलाई थी। जिसके परिणामस्वरूप आज आंध्रप्रदेश के 21 जिलों में 35 लाख  एकड में कीटनाशक रहित खेती होती और इस दौरान उनकी पैदावार घटने की बजाए बढ़ी है। अब तो वहां की सरकार भी किसानों के पक्ष में उतर आई है। सरकार ने किसानों की इस मुहिम को अपने हाथ में लेते हुए 2013 में 100 एकड जमीन में कीटनाशक रहित खेती करने का टारगेट रखा है। शर्मा ने बताया कि आंध्रप्रदेश के किसानों द्वारा शुरू की गई इस मुहिम में वहां के कुछ एनजीओ भी आगे आए हैं। वहां के  एक स्वयं सेवी महिला समूह ने किसानों कि  इस मुहिम के लिए पांच हजार करोड रूपए कीराशि एक त्रित की है। उन्होंने बताया कि हमारी ·माई का 40-50 प्रतिशत पैसा तो हमारी बीमारी पर ही खर्च हो जाता है। डा. शर्मा ने कहा कि 1990-91 में जब अमेरिका बीटी को भारत में लाना चाहते थे तो उस समय अमेरिका ने बीटी के बीज की कीमत सिर्फ चार करोड़ रुपए मांगी थी, लेकिन 2004 से अब तक अमेरिका बीटी के बीज के माध्यम से देश के किसानों से 6 हजार करोड़ रुपए कमा चुका हैं। डा. शर्मा ने कहा कि थाली को जहर मुक्त करने की इस लडाई में आने वाले युग में निडाना के किसानों को याद किया जाएगा। कुलदीप ढांडा ने पाठशाला में आए किसानों व खाप प्रतिनिधियो पर सवाल दागते हुए कहा कि क्या आप पूरे दृढ़ निश्चय के साथ यह कह सकते हैं कि आपके परिवार या रिश्तेदारी में कोई कैंसर का मरीज नहीं है? ढांडा ने कहा कि कीटनाशकों के अंधाधूंध प्रयोग के कारण आज कैंसर जैसी घातक बीमारी भी काफी तेजी से फैल रही है। ढांडा ने बताया कि गांव चिडोठ जिला भिवानी में हर पांचवें घर में तथा भटिंडा (पंजाब) की गली नंबर दो के 10 घरों में से 9 घरों में कोई ना कोई व्यक्ति कैंसर का मरीज है। किसान रमेश ने बताया कि किसान कीटनाशक के माध्यम से कीटों पर जैसे ही अटैक करता है तो कीट अपना जीवनकाल छोटा करना शुरू कर देते हैं तथा बच्चे पैदा करने की क्षमता को बढ़ा लेते हैं। इससे खेत में कीटों की संख्या कम होने की बजाए ओर अधिक बढ़ जाती है। किसान अजीत ने बताया कि अंगीरा, जंगीरा, फंगीरा अकेले ही 98 प्रतिशत मिलीबग को कंट्रोल कर लेते हैं। किसान मनबीर ने बताया कि हमें पौधो की भाषा सीखने की जरुरत है। जब पौधों पर किसी शाकाहारी कीट का आक्रमण होता है तो पौधे मासाहारी कीटों को बुलाने के लिए एक अलग तरह की सुगंध छोडते हैं और मासाहारी कीट उस सुगंध के कारण फसल में शाकाहारी कीटों को खाने के लिए पहुंच जाते हैं। इस अवसर पर खाप प्रतिनिधियों ने पांच पौधों के पत्ते काट कर प्रयोग को आगे बढ़ाया। पाठशाला के समापन पर सभी खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया।

कृषि विशेषज्ञ से की मार्गदर्शन की अपील

खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने खाद्य एवं कृषि विशेषज्ञ डा. देवेंद्र शर्मा से इस विवाद का निपटारा करने के लिए नवंबर में होने वाली खाप पंचायत में पहुंचकर उनका मार्गदर्शन करने की अपील की। डा. शर्मा ने खाप पंचायत की अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि खाप पंचायतों से फैसला सुनाते वक्त कोई चूक न हो, इसके लिए वे नवंबर में होने वाली सर्व खाप महापंचायत में अपने साथ-साथ हरियाणा एवं पंजाब हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश को भी साथ लेकर आएंगे। ताकि किसानों की इस मुहिम पर कानूनी मोहर भी लग सके।
किसानों को सम्बोधित करते डा. देवेंद्र शर्मा।
 डा. देवेंद्र शर्मा को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान।